Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan
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________________ . श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् श्रास "कल्पकरः"७७१ इति / कल्पं-देवलोकं करोतीति सः, भक्तानां तद्गतिहेतुत्वात् / कल्प एव कल्पकः, तत्र र:-तीक्ष्ण इति वा / 'तीक्ष्णे वैश्वानरे कामे रो ध्वनौ / / ' इत्येकाक्षरकोषः // 771 // "कल्पकृद्" 772 इति / कल्पनं कल्प:-प्रपञ्चादि, तत् कृन्ततीति सः, तत्साक्षात्कारानन्तरं तन्निवृत्तेः / / 772 / / "कल्पकर्ता" 773 इति / कल्पान्-दक्षान् करोतीति स तथा / कल्पानां प्रवर्तक इति वा / / 773 // "कल्पतां वरः" 774 इति / कल्पतां-नवीननिर्माणकारिणां मध्ये वर:प्रधान: श्रेष्ठ इति यावत् // 774 // "कलिकालज्ञः" 775 इति / कलिकालं-कलियुगं जानातीति सः / कलि:-नाशः सर्वसंहारलक्षणः, तस्य कालम्-अवसरं जानातीति वा।" इति मेदिनिः // 775 // "कल्याण:" 776 इति / कल्या-सत्यवाचम् अणतीति स तथा, श्रेयोरूपत्वाद् वा / / 776 // "कल्याणकरः" 717 इति / कल्याणं-मङ्गलं भक्तानां करोतीति सः // 777|| "कल्याणकृद्" 778 इति / कल्याणं-शुभम्, अर्थाद् दैत्यानां कृन्ततीति सः // 778 // "कल्पवपुः" 779 इति / कल्पं-नीरोगं वपुर्यस्य स तथा // 779 / / "कल्मषापहः" 780 इति / कल्मषं-पापम्, तदपहन्तीति स तथा / 'भगवान् पापनाशकः / / ' इति प्रसिद्धेः / / 780 // . "कमलाकरबोधनः" 781 इति / कमलानामाकरो बोध्यतेऽनेनेति स तथा। कमलाकरं बोधनं यस्येति वा / / 781 / / - "कमलानन्दः" 782 इति / कमलानां-पद्मानामानन्दो यस्मात् स तथा। 124
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