Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् "कर्मसाक्षी' 805 इति / कर्मणां-शुभाऽशुभकर्मणां साक्षीव साक्षी,. . तद्रष्टेत्यर्थः / / 805|| "करणम्" 806 इति / क्रियतेऽनेनेति शुभा-ऽशुभकर्मेति तत् तथा। वाडवाग्निरिति वा, जलशोषकत्वात्। 'करणं हेतु-कर्मणोः / वाडवाग्नौ हस्तलेपे // इति मेदिनिकारः / केन-सुखेन मुक्तो रण:-शब्दो यस्येति वा / / 806 // "किरणः" 807 इति / किरति तमः इति किरण:, गुणगुणिनोरभेदोपचारः // 807 // . “कर्णसूः" 808 इति / कर्ण्यते-आकर्ण्यते धर्मार्थिभिरिति कर्णः, वेदः / तं सूते-करोतीति सः // 808 // "कृष्णवासाः" 809 इति / कृष्णम्-अर्थात्तद्वर्णमाकाशम्, वास:-वस्त्रं यस्य स तथा / राम इति वा, तदंशत्वेन तद्रूपत्वात् / / 809|| "कृष्णवा" 810 इति / कृष्णवर्मा-अग्निः, तत्स्वरूपत्वात् / कृष्ण:व्याप्त: तस्य वर्त्म-मार्गो यस्मादिति वा // 810 // "कृतम्" 811 इति / कृतं-सत्ययुगम्, तत्प्रवर्तकत्वात् तथा / / 811 / "कर्ता" 812 इति / करणशीलः कर्ता, परानपेक्षकर्तृत्वात् / / 812 / / 'कृताहारः" 813 इति / कृत: प्रलयसमये विश्वस्य आहार:-हरणं येन स तथा // 813 // “कृतान्तसूः" 814 इति / कृतान्तं-सिद्धान्तं सूते इति सः, सर्वसिद्धान्तप्रणेतृत्वात् / कृतान्तं यममिति वा, तज्जनकत्वात् / 'कृतान्तो यम-सिद्धान्तदैवा-ऽकुशलकर्मसु / ' इत्यमरः / / 814 / / "कृतात्मा" 815 इति / कृताः-निष्पादिताः, आत्मान:-जीवा येनेति स तथा / / 815 // “कृतातिथ्य:" 816 इति / कृत आ-समन्तात् तिथ्य:-तिथिव्यवहारो येन 127
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