Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan
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________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् "कालकर्ता" 719 इति / कालं करोतीति स तथा, अहोरात्रादितत्तदुपाधिजनकत्वात् / कालं-यमं करोतीति वा, तज्जनकत्वात् // 719 // "कालनाशनः" 720 इति / कल्यन्ते-क्षिप्यन्ते विषयादिषु साधवो येनेति कालः, अहङ्कारः / तस्य नाशकः, गुण-गुणिनोरभेदात् / कालं-तमः, तं नाशयतीति वा // 720 // "कालत्रयः" 721 इति / अतीतादिकालत्रयसत्तायोगात् कालत्रयः // 721 // "काम:" 722 इति / कामयतेऽनेनेति कामः, विषयादिलक्षण:; : तत्प्रदातृत्वात् / / 722 / / "कामारिः" 723 इति / कामस्यारि:कामारिः / शम्भुरूपेण .. तद्विनाशकत्वात् / / 723 / / “कामदः" 724 इति / काम-यथाभिलषितं ददातीति कामदः / मुनीनां काम-विषयाभिलाष द्यति-खण्डयतीति वा / / 724 // . "कामचारी" 725 इति / कामेन-स्वेच्छया चरितुं शीलमस्य स तथा, अन्यानपेक्षगतित्वात् // 725|| "कालिकः" 726 इति / कासा-आकाङ्का विद्यते येषां ते काङ्गिणः, विशेषफललिप्सवः / तेषां कं-सुखं यस्मात् स तथा / काङ्याजगदुत्पत्त्यादानलक्षणया वा, दीव्यतीति वा, तेन दीव्यति खनति जयति जितमिति ठक् / / 726 // "कान्ति:" 727 इति / कमनं-कान्ति:, गुण-गुणिनोरभेदोपचारः। क:ब्रह्मा, तस्य अन्ति:-बन्धनं यस्मादिति वा, यन्मायया ब्रह्माऽपि बद्धस्तिष्ठतीत्यर्थः // 727 // "कान्तिप्रदः" 728 इति / कान्तिं-शोभां प्रददातीति स तथा / कान्तिम्अर्थाद् ग्रहाणां प्रकर्षण द्यति-खण्डयतीति वा / / 728 // . . . 119
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