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STUDIES IN JAINISM
ऋषभ देव के बाद विभिन्न कालों में अजित से लेकर नेमि पर्यंत बीस अन्य तीर्थकर हुए , जिनका जैन वाङमय में सविशेष वर्णन है और जो महाभारत काल से प्राक् कालीन है।
___ इनके पश्चात् महाभारत कालमें कृष्ण के चचेरे भाई और समुद्रविजय के राजकुमार अरिष्टनेमि हुए, जो बाईसवें तीर्थंकर थे और कुमारावस्था में ही प्रव्रजित होकर ऊर्जयन्तगिरी (गुजरात) से मुक्त हुए थे। इनका भी वैदिक साहित्य में उल्लेख मिलता है।
इनके कोई एक हजार वर्ष पीछे तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जो काशी के नरेश अश्वसेन के राजपुत्र थे और इन्हें अब ऐतिहासिक महापुरुष मान लिया गया है ।
पार्श्वनाथके ढाई सौ वर्ष बाद वर्धमान महावीर हुए, जो अन्तिम चौवीसवें तीर्थकर और बुद्ध के समकालीन थे तथा जिनकी आज सारे राष्ट्रमें २५०० वीं निर्वाणशताब्दी मनायी जा रही है ।
इन तीर्थकारों ने जन-कल्याण के लिए जो उपदेश दिया उसे उनके गणधरों (प्रधान शिष्यों) ने बारह वर्गों में निबद्ध किया, जिसे 'द्वादशाङगश्रुत' कहा गया। महावीर का द्वादशाङगश्रुत आज भी मौजूद है । अन्य सभी तीर्थकरों का द्वादशाङगश्रुत नष्ट एवं विलुप्त हो गया है । वर्धमान-महावीर का श्रुत भी पूरा उपलब्ध नहीं है। आरम्भ में वह शिष्य-परम्परा में स्मृति के आधार पर विद्यमान रहा। बाद में उसे संकलित किया गया । वर्तमान में जो श्रुत प्राप्त है वह दिगम्बर परम्परा के अनुसार बारहवे अंग दृष्टिवाद का कुछ अंश है , शेष ग्यारह अंग और बारहवे अंग का बहुभाग नष्ट एवं लुप्त हो चुका है । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार ग्यारह अंग उपलब्ध हैं और बारहवां दृष्टिवाद अंग विच्छिन्न हो गया है।
धर्म, दर्शन और न्याय
उक्त श्रुत में धर्म, दर्शन और न्याय तीनों का प्रतिपादन है। आचार के प्रतिपादन का नाम धर्म है। धर्म का जिन विचारों-चिन्तनों द्वारा समर्थन एवं सम्पोषण किया जाता है उन विचारों-चिन्तनों को दर्शन कहा जाता है, और जब धर्म के समर्थन के लिए प्रस्तुत विचारों को युक्ति-प्रतियुक्ति, खण्डन-मण्डन एवं शङका-समाधान पुरस्सर दृढ़ किया जाता है तो उसे न्याय अथवा तर्क (लाज़िक) कहते हैं । धर्म, दर्शन और न्यायमें संक्षेपतः यही मौलिक भेद है । वस्तुतः न्यायशास्त्र से विचार को जो दृढ़ता मिलती है वह चिरस्थायी, गहरी और निर्णयात्मिका होती है । उसमें सन्देह, विपर्यय या अनध्यवसाय (अनिश्चितता) की स्थिति बहुत कम होती है । इसी कारण भारतीय दर्शनों में न्यायशास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है।