Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna

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Page 260
________________ JAINA ETHICS AND THE META-ETHICAL TRENDS 245 5. Tattvürthasūtra 1.1 (Tatīvārihasūtru of Umasyati under the title Sarvārthasidhi, (Varanasi)). 6. Reason and Goodness by B. Blanshard, p. 68. 7. Tbid, p.68. ६. Sc Note 1. Discussion ... (On the Version of the Paper read in the Seminar ) J. C. Sikdar : How do Jainas draw distinction between good and bad Subha and Asubha ? Mukunda Lath : Dr. Sikdar's using the word good for Subha is inappropriate, for Subha denotes something Māngalika, the denotation of which is not necessarily co-extensive with that of good. Good is a peculiarly western concept and we better stick to our own conents. कैलासचंद्रजी : जिन प्रकार के प्रश्नोंकी चर्चा चल रही है उनका संबंध स्पष्ट रूप से जैन आगमों से नहीं है । कुछ नयी शंकाओं उठायी गयी है। उनका विचार जैनों ने नही किया है । लेकिन इन प्रश्नों के उत्तर हमें जैन तर्क के अनुसार ही देने चाहिये । अहिंसा का और शुभ का संबंध आत्मा से जोड़ा जाता है । अपितु आत्मा न मानने वाले चार्वाक भी अहिंसा और शुभ मानते हैं। शुभ का वस्तुतः पुद्गल और आत्मा इन दोनों से संबंध है। शुभ की अलग अलग पराकाष्ठा होती है और शुभ तथा अशुभ में सापेक्ष रूप से विभाग करना चाहिए, निरपेक्ष रूप से नहीं । उसी तरह संसार और मोक्ष में निरपेक्षतया फर्क नहीं करना चाहिए। संगमलाल पांडे : वास्तव में Values cannot be derived from facts. इन का (डॉ. सोगानी जी का) निष्कर्ष कि sphere of values in closely tied up with our feclings in the absence of which we are typically blind गलत है। हमारे अच्छे होने का और हमारे अंदर संवेदन या भाव न होने का कोई संबंध नहीं है। उसी प्रकार उनका 'दर्शन' का अनुवाद knowledge गलत है : क्यों कि दर्शन में faith का element है। ज्ञान उस से अलग है। वैसे आचार

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