Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna

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Page 206
________________ स्याद्वाद : एक चिन्तन 191 ७. भगवती सूत्र - १६८।१० ८. धवला खण्ड १, भाग १, सूत्र ११, पृ. १६७ - उद्धृत तीर्थंकर महावीर डा. भारिल्ल ९. यदेव तत् तदेव अतत्, यदेवकं तदेवानेकम, यदेव सत् तदेवासत्, यदेव नित्यं तदेवानित्यं - समयसार टीका (अमृतचंद्र) १०. आदीपमाव्योमसमस्वभावं स्याहादमुद्रा नतिमेदि वस्तु __ अन्ययोग व्यवच्छेदिका ५ ११. न विवेचयितुं शक्यं विनापेक्षां हि मिश्रितम् ।। ___ अभिधान राजेन्द्र खण्ड, ४, पृ. १८५३ 12. “We can only know the relative truth, the Real truth is known only to the Universal Observer.' --Quoted in Cosmology, Old and New p. XIII. १३. स्यात्कारः सत्यलाञ्छन: १४. ततः स्याद्वाद अनेकांतवाद - स्याद्वादमंजरी १५. भिक्खू विभज्जवायं च वियागरेज्जा - सूत्रकृतांग १।१४।२२ १६. मज्झिमनिकाय - सूत्र ८ (उद्धृत आगम युग का जैन दर्शन पृ. ५३) १७. भगवती सूत्र १२ २.४४३ १८. देखिए - शून्यवाद और स्याहाद नामक लेख - पं. दलसुखभाई मालवणिया (आचार्य आनन्द ऋषिजी अभिनन्दन ग्रंथ) पू. २६५. १६. सुत्तनिपात ५१।२ २०. सुत्तनिपात ५१०३ २१. सुत्तनिपात ४६।८-९ २२. सयं सयं पसंता गरहन्ता परं वयम् । जे उतत्थ विउस्सन्ति संसार ते विउस्सिया- सूत्र कृतांग १।१२।२३ २३. (अ) सप्तमिः प्रकारैर्वचनविन्यासः सप्तभंगीति गीयते । स्याद्वादमंजरी कारिका २३ की टीका (ब) प्रश्नवशात् एकत्र वस्तुनि अविरोधेन विधिप्रतिषेधकल्पना सप्तभंगी राजवातिक १६ २४. जैन दर्शन - डा. मोहनलाल मेहता, पृ. ३००-३०७.

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