Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna
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STUDIES IN JAINISM
सत्यता के समर्थक है क्योंकि वस्तुतत्त्व की अनन्त धर्मात्मकता अन्य सम्भावनाओं को निरस्त नहीं करती है और स्याद्वाद उस कथित सत्यता के अतिरिक्त अन्य सम्भावित सत्यताओं को स्वीकार करता है।
इस प्रकार वस्तुसत्य की अनन्त धर्मात्मकता तथा प्रमाण, नय और दुर्नय की धारणाओं के आधार पर स्याद्वाद सिद्धान्त त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र ( Three valued logic ) या बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र ( Many-valued logic) का समर्थक माना जा सकता है । किन्तु जहाँ तक सप्तभंगी का प्रश्न है उसे त्रिमूल्यात्मक नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसके नास्ति एवं अवक्तव्य नामक भंग क्रमशः असत्यता एवं अनियतता ( Indeterminate ) के सूचक नहीं है । सप्तभंगी का प्रत्येक भंग सत्य मूल्य सूचक है, यद्यपि जैन विचारोंको ने प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभंगी के रूप में सप्तभंग के जो दो रूप माने हैं, उसके आधार पर यहाँ कहा जा सकता है कि प्रमाण सप्तभंगी के सभी भंग सुनिश्चित सत्यता का और नय सप्तभंगी के सभी भंग सम्भावित या आंशिक सत्यता का प्रतिपादन करते हैं । असत्य मूल्य का सूचक केवल तो दुर्नय हो है, अतः सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक नहीं है।
आज यह आवश्यक है कि हम आधुनिक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में जैन तर्कशास्त्र का पुनर्मूल्यांकन और विवेचन करें और यदि ऐसा किया जा सका तो इस २५०० वीं निर्वाण शताब्दी वर्ष में जैन न्याय क्षेत्र में हमारा यह एक अनुपम योगदान होगा।
टिप्पणियाँ
स्था
१. वाक्येष्वनेकांतद्योती गम्यं प्रति विशेषकम ।
स्यान्निपातोर्थयोगित्वात्तव केवलिनामपि ।। - आप्त मीमांसा १०३ २. सर्वथा त्वनिषेधकोऽनेकांतताद्योतकः कथंचिदर्थ: स्यातशब्दो निपातः ।
-पंचास्तिकाय टीका ३. स्यादित्यव्ययमनेकांतद्योतकं । -स्यादवादमंजरी ४. कीदृशं वस्तु ? नाना धर्मयुक्तं विविधस्वभावः सहितं, कथंचित् अस्तित्वनास्तित्वैकत्वानेकत्वनित्यत्वानित्यत्वभिन्नत्वप्रमुखैराविष्टम्
स्वामी कातिकेय अनुप्रेक्षा-टीका शुभचंद्र २५३ ५. उत्पादव्ययघ्रौव्ययुक्तं सत् - तत्त्वार्थ सूत्र ५।२६ ६. गोयमा ! जीवा सिय सासया सिय असासया - दव्वट्ठयाए
सासया भावठ्ठयाए असासया - भगवती सूत्र ७।३।२७३