Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna
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तथा जो मिट्टी की स्थिति है वही घट का उत्पाद और पिण्ड का विनाश है क्योंकि व्यतिरेक अन्वय का प्रतिक्रमण नहीं करता ।
STUDIES IN JAINISM
यदि ऐसा नहीं मानें तो उत्पाद को अन्य, व्यय को अन्य और धौव्य को अन्य मानना होगा । ऐसा मानने पर घट की उत्पत्ति नहीं होगी क्योंकि मिट्टी के पिण्ड का विनाश होने के साथ ही घट उत्पन्न होता है वही घट की उत्पत्ति का कारण है, उनके विना घट कैसे उत्पन्न हो सकता है ? यदि होगा तो असत् की उत्पत्ति माननी होगी और तब गधे के सींग भी उत्पन्न हो सकेंगे ।
इसी प्रकार उत्पाद और धौव्य के विना केवल व्यय मानने पर मिट्टी के पिण्ड का व्यय ही नहीं होगा, क्योंकि मिट्टी के पिण्ड के व्यय के साथ ही घट उत्पन्न होता है, उत्पत्ति को विनाश से भिन्न मानने पर पिण्ड का विनाश कैसे होगा । होगा तो सत् का उच्छेद मानना होगा तथा उत्पाद व्यय के विना केवल धरौव्य मानने से या तो मिट्टी रुव नहीं होगी या क्षणिक अथवा नित्य होगी और दोनों अवस्थाओं में घट की उत्पत्ति संभव नहीं है । अतः उत्पाद, व्यय और धरोव्य का परस्पर में, विनाभाव हैं। एक के बिना शेष संम्भव नहीं हैं । अतः सत् उत्पाद व्यय हरौव्यात्मक है और वही द्रव्य है ।
किन्तु द्रव्य का उत्पाद व्यय आदि नहीं होता, पर्यायों का होता है । और पर्यायें द्रव्य में होती हैं । इसलिये इन्हें द्रव्य कहा जाता है । जैसे बीज अंकुर और वृक्षत्व ये वृक्ष के अंश हैं । बीज का नाश, अंकुर का उत्पाद और वृक्षत्व का धरौव्य तीनों एक साथ होते हैं । नाश का आधार बीज है, उत्पाद का आधार अंकुर है, और धरोव्य का आधार वृक्षत्व है और ये सब वृक्ष ही हैं । उसी प्रकार जो नष्ट होता है, जो उत्पन्न होता है और जो ध्रुव है वे सब द्रव्य रूप ही है, द्रव्य से भिन्न पदार्थ नहीं है । यदि उत्पाद व्यय धरौव्य को अंशों का न मानकर द्रव्य का ही माना जाये तो सब गड़बड़ हो जायेगी । इसलिये उत्पाद व्यय धरौव्य पर्याय में होते हैं और पर्याय द्रव्यकी होती हैं । अतः ये सब द्रव्यरूप ही हैं । यह लयात्मकता वस्तु का जीवन है। इसके विना वस्तु नहीं बनती । आचार्य समन्तभद ने अपने आप्तमीमांसा में एक दृष्टान्त के द्वारा इसे स्पष्ट किया है और कुमारिल भट्ट ने अपने मीमांसा श्लोकवार्तिक में उसी का अनुसरण करते हुए कहा है।
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वर्धमानकभङगे च रुचकः क्रियते यदा ।
तथा पूर्वार्थिनः शोकः प्रीतिश्चाप्युत्तरार्थिनः ॥
मार्थिनस्तु माध्यस्थ्यं तस्माद् वस्तु तयात्मकम् ।'
भर्थात् जब वर्धमानक को तोड़कर रुचक बनाया जाता है तो वर्धमानक के प्रेमी को शोक होता है और रुचक के प्रेमी को हर्ष होता है । किन्तु स्वर्ण के प्रेमी को न शोक होता है और न ह । अतः वस्तु तयात्मक है क्योंकि नाश के विना शोक नहीं, उत्पाद के विना हर्ष नहीं और स्थिति के बिना माध्यस्थ्य नहीं ।