Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna
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STUDIES IN JAINISM
(ख) धर्मकीति का स्याद्वादपर निम्न आक्षेप है -
सर्वस्योभयरूपत्वे तद्विशेषनिराकृतेः ।। चोदितोदथि खादेति किमुष्ट्र नाभिधावति ।।
प्रमाण वा. १-१८३ 'यदि सब पदार्थ उभयरूप- अनेकान्तात्मक है, तो उनमें भेद न रहने के कारण किसी को "दही खा" कहने पर वह ऊँट को खाने के लिए क्यों नहीं दौड़ता' ?
धर्मकीति के इस आक्षेप का सबल जबाब अकलंक देते हुए कहते हैं । दध्युष्ट्रादेरभेदत्वप्रसंगादेकचोदनम् । पूर्वपक्षमविज्ञाय दूषकोऽपि विदूषकः ।। सुगतोऽपि मृगो जाता मृगोऽपि सुगतः स्मृतः । तथापि सुगतो वन्द्यो मृगः खाद्यो यथेष्यते ।। तथा वस्तुबलादेव भेदाभेदव्यवस्थितेः । चोदितो दघि खादेति किमुष्ट्रमभिधावति ।।
न्याय वि. का. ३७२, ३७३, ३७४ 'दघि और ऊँट को एक बतलाकर दोष देना धर्मकीति का पूर्व पक्ष (अनेकान्त) को न समझना है और दूषक होकर भी विदूषक - उपहास्य है, क्योंकि उन्हीं की मान्यतानुसार सुगत भी मृग थे और मृग भी सुगत हुआ है। फिर भी सुगत को वन्दनीय और मृग को भक्षणीय कहा जाता है और इस तरह पर्याय भेद से सुगत में वन्दनीय-भक्षणीय की भेदव्यवस्था तथा सुगत व मृग में एक चित्त सन्तान (जीवद्रव्य) की अभेदव्यवस्था की जाती है, उसी प्रकार वस्तुबल (पर्याय और द्रव्य की प्रतीति) से सभी पदार्थों में भेद और अभेद की व्यवस्था है । अतः किसीको दही खा' कहने पर वह ऊँट को खाने के लिये क्यों दौड़ेगा, क्योंकि सत् द्रव्य की अपेक्षा अभेद होने पर भी पर्याय की अपेक्षा उनमें भेद है । अत एव वह भक्षणीय दही (पर्याय) को ही खाने के लिए दौड़ेगा, अभक्षणीय ऊँट (पर्याय) को खाने के लिए नहीं। यही वस्तुव्यवस्था है । भेदाभेद (अनेकान्त) तो वस्तु का स्वभाव है, उसका अपलाप नहीं किया जा सकता।
यहाँ अकलंक ने धमकीर्ति के आक्षेप का शालीन उपहास को लिए हुए बड़ा ही करारा उत्तर दिया है । बौद्ध-परम्परा में सुगत पूर्वजन्म में मृग थे, तब वे भक्षणीय थे और जब वही मृग सुगत हुआ तब वह भक्षणीय नहीं रहा – वन्दनीय बन गया। इस प्रकार एक-चित्त-सन्तान की अपेक्षा उनमें अभेद है और मग तथा सुगत दो पर्यायों की दृष्टि से भेद है । इसी प्रकार जगत् की प्रत्येक वस्तु इस भेदाभेद की व्यवस्था का अतिक्रमण नहीं करती। अकलक ने धर्मकीर्ति के आरोप का उत्तर देते हुए यहाँ यही सिद्ध किया है। इस तरह अकलंक ने दूषणोद्धार का कार्य बड़ी योग्यता और सफलला.के साथ पूर्ण किया है।
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