Book Title: Studies in Jainism
Author(s): M P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
Publisher: Indian Philosophical Quarterly Publication Puna
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स्याद्वाद : एक चिन्तन
सागरमल जैन
स्याद्वाद का अर्थ-विश्लेषण
स्याद्वाद शब्द स्यात् और वाद इन दो शब्दों से निप्पन हुआ है । अतः स्याद्वाद को समझने के लिए इन दोनों शब्दों का अर्थ विश्लेषण आवश्यक है । स्यात् शब्द के अर्थ सन्दर्भ में जितनी भ्रन्ति दार्शनिकों में रही है, सम्भवतः उतनी अन्य किसी शब्द के सम्बन्ध में नहीं। विद्वानों के द्वारा हिन्दी भाषा में स्यात का अर्थ "शायद", "सम्भवतः" "कदाचित्" और अंग्रेजी भाषा में Probable, May be, Perhaps, Somehow आदि किया गया है और इन्हीं अर्थों के आधार पर उसे संशयवाद, सम्भावनावाद या अनिश्चयवाद समझने की भूल की जाती रही है । यह सही है कि किन्हीं सन्दर्भो में स्यात् शब्द का अर्थ कदाचित्, शायद, सम्भव आदि भी होता है। किन्तु इस आधार पर स्याद्वाद को संशयवाद या अनिश्चयवाद मान लेना एक भ्रान्ति ही होगा। हमें यहां इस बात को भी स्पष्ट रूप में ध्यान में रखना चाहिए कि प्रथम तो एक ही शब्द के अनेक अर्थ हो सकते है, दुसरे अनेक बार शब्दों का प्रयोग उनके प्रचलित अर्थ में न होकर विशिष्ट अर्थ में होता है, जैसे जैन परम्परा में धर्म शब्द का प्रयोग धर्म-द्रव्य के रूप में होता है । जैन आचार्यों ने स्यात् शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ में ही किया है। यदि स्याद्वाद के आलोचक विद्वानों ने स्याद्वाद सम्बन्धी किसी भी मूल ग्रन्थ को देखने की कोशिश की होती, तो उन्हें स्यात् शब्द का जैन परम्परा में
Presented in the Seminar on "Taina Logic and Epistemology" (Poona University, 1975).