Book Title: Studies in Desya Prakrit
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ Hemacandra's Prefatory Observations in the Desinämamālā देशी दुःखदर्भा प्रायः संदर्भिताऽपि दुर्बोधा | आचार्य - हेमचन्द्रस्तत् तां संदृभति विभजति य ॥ समग्र - शब्दानामनुशासने चिकीर्षिते संस्कृतादि-भाषाणां षण्णां शब्दानुशासने सिद्धहेम - नाम्नि सिद्धिरुपनिवद्धा । इदानीं लोप- आगम - वर्णविकारादिना क्रमेण पूवैरसाधित - पूर्वा देश्याः शब्दा अवशिष्यन्ते । तत्स ग्रहार्थमयमारम्भः ॥ निःशेष- देशी - शास्त्राणां परिशीलनेन प्रादुभूतं क्वचिदर्थासमर्पकत्वेन क्वचिद्वर्णानुपूर्वी -निश्चयाभावेन क्वचित् पूर्व- देशी- विसवादेन क्वचिद्गतानुगतिकता - निबद्ध-शब्दार्थ तया यत् कुतूहल तेन आकुलत्व आ कथमयमपभ्रष्ट - शब्द- पङ्क-मग्नो जनः समुद्धरणाय इति परोपचिकीर्षा - रभसस्तेन हेतुना देशीरूपाणां शब्दानां अस्माभिः सग्रहो विरच्यते ॥ * जे लक्खणे न सिद्धा न पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । न-य गउण लक्खणा - सत्ति-संभवा ते इह बिद्धा ॥ Jain Education International * देस - बिसेस - पसिद्धीइ भण्णमाणा अणतया हुंति । तम्हा अणाइ पाइय-पयहं भासा - विसेसओ देशी ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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