Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ५ सन् १५९८ में जब डच मोरिसस पहुँचे तो उन्होंने कबूतर जाति के एक पक्षी "डोडो' का शिकार किया जो अन्तत: ५० साल के बीच पूरी तरह समाप्त हो गया। उसके समाप्त होने से एक विशेष वृक्ष जाति भी नष्ट हो गयी। तुलसी का पौधा वातावरण को शुद्ध रखने में एक अहम् भूमिका निभाता है। उसके गंध से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। खांसी, जुकाम, मलेरिया, गले की बीमारियों आदि में वह बड़ा काम आता है। शायद इसीलिए उसकी पूजा की जाती है। पर्यावरण की प्रदूषित स्थिति की गम्भीरता को देखकर यूनेस्को के तत्वावधान में वैश्विक स्तर पर कदम उठाये गये। भारत ने भी इसका पुरजोर समर्थन किया। यहाँ भी इण्डियन ड्राफिकल इकोलॉजी सोसाइटी, इण्डियन एनवायरमेन्ट सोसायटी, नेशनल एनवायरमेन्ट रिसर्च इन्स्टीट्यूट, नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी और सेंट्रल ऐरिड जोन रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना की गई जिनके माध्यम से पर्यावरण सम्बन्धी अध्ययन और शोधकार्य किये जा रहे हैं। प्रकृति से मानव और मानवेतर प्राणिसमुदाय अविछिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। अत: पर्यावरण का क्षेत्र अब बहुत विस्तृत हो गया है- १. जल प्रदूषण २. वायु प्रदूषण ३. भू-प्रदूषण ४. ध्वनि प्रदूषण ५. वन्य संरक्षण ६. जनसंख्या पर नियन्त्रण ७. सामाजिक भावनाओं का विकास ८. विश्वबन्धुत्व का विकास ९. शिक्षा और अनुशासन १०. श्रम शक्ति को जागृतकर भ्रष्टाचार से मुक्त करना ११. आध्यात्मिक चेतना को जागृत करना १२. व्यसन मुक्त समाज की स्थापना १३. अहिंसा का पाठ १४. लोकतान्त्रिकता की शिक्षा और १५. जीवन मूल्य। मनुष्य और प्रकृति के बीच शान्ति बनाये रखने के लिए मात्र यही आवश्यक नहीं है कि मनुष्य प्रकृति को प्रत्यक्षत: कोई हानि न पहुँचाये बल्कि उसे उन सभी योजनाओं को भी समाप्त कर देना चाहिए जो प्रकृति के अहित में हैं। जैन दर्शन प्रकृति को क्षति पहुँचाने वाले शस्त्रों के निर्माण की अनुमति नहीं देता। अहिंसा की दृष्टि से जिन व्यवसायों को जैन दर्शन में निषिद्ध माना गया है उनमें ऐसे शस्त्रों का उत्पादन भी सम्मिलित है जो कष्ट देने या हानि पहुँचाने के लिए बनाए जाते हैं। अंगार-कर्म यदि जंगलों में आग लगाकर उन्हें साफ करता है तो वन-कर्म जंगल कटवाने का व्यवसाय है। जैन चिन्तकों ने मानव परिवेश में वनों की महत्ता को बहुत पहले ही समझ लिया था। वनों की कमी अन्तत: मानवीय अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है। आज यह सुस्पष्ट है कि प्रकृति की सुरक्षा के लिए वनों का संरक्षण आवश्यक है और इसी में मानव का कल्याण है। आज शिक्षा जगत् में पर्यावरण और प्रदूषण पर विशेष बल दिया जा रहा है। पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा के मूलभूत सिद्धान्त हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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