Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 86
________________ पुद्गलों का आना-जाना होता है वह स्थावर लोक है। पंचविध स्थावर जीव स्पर्श ज्ञान द्वारा ही जाने जाते हैं। स्थावर जीव में त्रसत्व भी पाया जाता है। पृथ्वी, जल, और वनस्पति ये तीन स्थावर अर्थात स्थिर योग संबंध के कारण स्थावर कहे जाते हैं परन्तु अग्नि और वायु उन पांच स्थावरों में ऐसे हैं जिनमें चलन क्रिया देखकर व्यवहार से त्रस भी कह देते हैं। पर्यावरणीय घटकों "पृथिव्यपतेजो वायु वनस्पतयः स्थावराः" के अनुसार पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और वनस्पति इन पांच स्थावर जीवों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्थावर जीव के पांच प्रकार हैं - 1. पृथ्वीकायिक जीव - पृथ्वी ही शरीर है जिनका, उन्हें पृथ्वीकायिक जीव कहते हैं। जैसे - पर्वत, चट्टान, खनिज, पत्थर आदि। इनके भोगोपभोग की सीमा बनाएं तो धर्म निर्वाह और पर्यावरण संरक्षण ही होगा। जलकायिक - जल ही शरीर है जिनका, वे जलकायिक हैं जैसे ओस, बादल, पानी आदि। अनावश्यक पानी मत फेंको, ओस की बूंद को भी पानी की बूंद और स्थावर जीव जानो, यही पर्यावरण का मूल है। अग्निकायिक - अग्नि ही शरीर है जिनका उन्हें अग्निकायिक स्थावर जीव कहते हैं, जैसे - अंगारा आदि। जलती आग में पानी की बूंद न डालिए जिससे अग्नि और जलकायिक दोनों जीवों की विराधना हो। आतिशबाजी न छोड़ें और यही शिक्षा आगे की पीढ़ी को दें जिससे वातावरण प्रदूषित न हो। वायुकायिक - वायु ही शरीर है जिनका ऐसे जीव वायुकायिक जीव हैं जैसे - आंधी, झंझावत आदि। वायु में किसी प्रकार के प्रदूषण का सम्मिश्रण न हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। वनस्पतिकायिक - पेड़-पौधे आदि वनस्पतिकायिक जीव हैं। निगोद के जीव भी एकेन्द्रिय हैं। इन्हें वनस्पतिकायिक माना गया है। वनस्पति के दो भेद हैं - 1. प्रत्येक 2. साधारण। प्रत्येक वनस्पति वे हैं जिनमें प्रत्येक जीव का अलग-अलग शरीर होता है। साधारण वनस्पति वे हैं जिनमें अनन्त जीवराशि का एक ही शरीर होता है। साधारण जीव में यदि एक जीव का जन्म-मरण होता तो वहां रहने वाले अनन्त जीवों का भी जन्म-मरण होता है। इन वनस्पतिकायिक साधारण वनस्पति जीवों को निगोदिया जीव भी कहा जाता है। निगोदिया जीव साधारण ही होते हैं प्रत्येक नहीं। पर्यावरण और अहिंसा का अटूट संबंध है अत: स्थावर जीवों की रक्षा ही पर्यावरण संरक्षण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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