Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 105
________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ९९ ४) वायु प्रदूषण के बारे में भी जैन धर्म सजग है, जैनों में मुख वस्त्रिका बांधने के पीछे भी सूक्ष्म दृष्टि यही है कि वायु, सूक्ष्म जीव व रज.कण का प्रवेश न हो सके। जैनाचार्य इस विषय में सजग थे और अपनी श्वांस को भी दूषित न कर पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाते थे। ५) ध्वनि प्रदूषण अर्थात् अवांछित शोर अनिष्टकारक है, हानिकारक है। जैनाचार में साधु-सन्तों के लिये वाहन में बैठना ही निषिद्ध है, वे इसीलिये पदयात्रा करते हैं और गृहस्थ के लिये भी निर्धारित १४ नियमों के अन्तर्गत वाहन उपयोग की मर्यादा है। ६) सन्त-सतियाँ यह प्रतिज्ञा दिलाते हैं कि स्नान में एक बाल्टी से अधिक पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये। यह नियम भले ही हमें हास्यास्पद लगे पर आज जल संकट को देखते हुए इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। ७) प्राकृतिक दोहन के सभी कार्य महारम्भ की श्रेणी में हैं व नरक में जाने के चार कारणों में से एक हैं। अत: महारम्भ का त्याग करके ही प्रकृति व प्राणियों के विनाश से बचा जा सकता है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर ही उपदेश देते थे, इसके पीछे प्रकृति व पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम व सजगता प्रकट होती है और उनके प्रतीक चिन्ह भी पर्यावरण के संरक्षण को अपने में समेटे हुए हैं। उक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण विश्व को शान्ति, अहिंसा, मैत्री व प्रेम का सन्देश देने वाला धर्म जैन धर्म है। इसका प्रत्येक आचार नीतिसंगत, धर्मसंगत, वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर खरा व पर्यावरण को संरक्षण देने वाला है। यह एक विडम्बना ही है कि महावीर, गौतम, राम, कृष्ण, गांधी व गुरुनानक की इस अंहिसा प्रधान देवधरा पर आज स्थिति बड़ी दयनीय व विचारणीय है, विश्व सभ्यता-संस्कृति में अग्रणी, शस्य श्यामला, गंगा-यमुना की धारिणी इस तपोभूमि में सूर्य की पहली किरण के साथ लाखों जीवों की हत्याकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और अहिंसा प्रधान इस देवधरा पर हिंसा का जो तांडव हो रहा है, इसे रोकने हेतु हमें कुछ संकल्प लेने होंगे। १) पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण को रोकने के लिये परस्पर सक्रिय सहयोग करना होगा। दैनिक व्यवहार में पोलिथीन के बैगों के प्रयोगों को हतोत्साहित करना होगा। ३) बूचड़खानों का विरोध करना होगा। ४) शाकाहारी बनना होगा। ५) मांस निर्यात का विरोध करना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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