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श्रमण, वर्ष ५४, अंक ४-६/अप्रैल-जून २००३
वर्तमान रूप में वैदिक और श्रमण संस्कृति के समन्वित रूप हैं। अपने उद्बोधन में प्रो० सुरेन्द्र सिंह ने श्रमण परम्परा की प्राचीनता, बौद्ध-जैन-आजीवक - आदि विभिन्न धाराओं में उसके विकास और भारतीय संस्कृति में उसके योगदान पर प्रकाश डाला। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो० राममूर्ति त्रिपाठी ने कहा कि भारत में आध्यात्म की दो धारायें बहुत प्राचीन हैं - श्रमण और वैदिक। ये दोनों एक ही वृक्ष की दो शाखायें हैं। इनका भेद जातीय नहीं अपितु सैद्धान्तिक है। सामान्यत: यह माना जाता है कि श्रमण धारा का नेतृत्त्व क्षत्रिय कर रहे थे और वैदिक धारा का ब्राह्मण, फिर भी बहुत सारे ब्राह्मण श्रमण परम्परा में चल रहे थे और बहुत सारे क्षत्रिय वैदिक धारा में। संसार त्याग की परम्परा का अधिक सम्बन्ध क्षत्रियों से मूलत: न होकर ऐसे परिव्राजक सम्प्रदायों में मिलता है जिनकी सामान्य आख्या श्रमण थी। वैदिक परम्परा में यत्र-तत्र मुनियों - श्रमणों के उल्लेख मिलते हैं और यही अधिक संभाव्य है कि श्रमणों की अवैदिक धारा वैदिक धारा के साथ-साथ प्रचलित रही। इसका ऐतिहासिक स्तर पर उन्मेष वैदिक काल के अंतिम युग में हुआ। इस धारा का मूल सिन्धु सभ्यता के योगियों से संभव है। आगे उन्होंने श्रमण परम्परा की सभी मुख्य धाराओं की विस्तृत चर्चा की।
इस सत्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, स्थानीय विभिन्न महाविद्यालयों के प्राध्यापक एवं शोध छात्र और देश के विभिन्न भागों से पधारे विद्वान् उपस्थित थे। इस अवसर पर वाराणसी के जैन समाज के गणमान्यजनों की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही।
तीन दिवसीय इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुल नौ शैक्षणिक सत्र हुए जिनमें कुल ४३ शोध पत्रों का वाचन हुआ। संगोष्ठी में लगभग ५० विद्वानों ने अपने-अपने शोधपत्र भेजे, किन्तु उनमें से कुछ यहाँ उपस्थित न हो सके। संगोष्ठी के विभिन्न शैक्षणिक सत्रों में पढ़े गये शोध आलेखों और उनके विद्वान् लेखकों का विवरण इस प्रकार है :
महावीर और गौतम बुद्ध पर्यन्त श्रमण परम्परा
२६-२८ अप्रैल २००३ प्रथम सत्र - अपराह्न ३ बजे से सायं ४.३० बजे तक अध्यक्षता - प्रो० सच्चिदानन्द श्रीवास्तव, गोरखपुर डॉ० सीताराम दुबे - बौद्धसंघ एवं उसका बुद्धकालीन विकास
उज्जैन २. डॉ० इरावती
- Śramaņa Tradition and theatre वाराणसी ३. डॉ० वशिष्ठ नारायण सिन्हा- महावीर पूर्व वैदिक एवं जैन परम्परायें :
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