Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 130
________________ १२४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक ४-६ / अप्रैल-जून २००३ ऐसे ही महापुरुष थे जिन्होंने धर्म-सम्प्रदाय - जाति आदि से ऊपर उठकर मानवमात्र को दया, परोपकार, सहिष्णुता आदि सद्गुणों के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित किया। आदर्शों की बात तो हम सभी करते हैं, पर जीवन में उतारने की सामर्थ्य केवल महापुरुषों में ही होती है। सामान्यजनों और महापुरुषों में यही अन्तर है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक स्व० शुक्लचन्द्र जी महाराज ने आचार्य सोहनलाल जी म० द्वारा ही दीक्षा ग्रहण की थी। अपने दीक्षा प्रदाता गुरु की पुण्य स्मृति में उन्होंने इस पुस्तक की रचना की। इसका प्रथम संस्करण १९५३ ईस्वी में प्रकाशित हुआ था, जो लम्बे समय से अनुपलब्ध रहा है। उत्तर भारतीय प्रवर्तक मुनि श्री सुमनकुमार जी म०सा० द्वारा सुसम्पादित और आचार्य श्री सोहनलाल जैन ज्ञान भंडार, अम्बाला शहर द्वारा ई० सन् २००२ में भगवान् महावीर की २६००वी जयन्ती के अवसर पर प्रकाशित इस पुस्तक में कुल ४५ अध्याय और ७ परिशिष्ट हैं। परिशिष्ट क्रमांक ३ " श्री आत्मारामजी : कुछ तथ्य'; परिशिष्ट क्रमांक ५ श्वे० स्थानकवासी श्रमणपरम्परा; परिशिष्ट क्रमांक ६ पंजाब श्रमण संघ की आचार्य परम्परा और अंतिम परिशिष्ट अ०भा० वर्ध० स्था० श्रमणसंघ की आचार्य - परम्परा ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। पुस्तक के प्रारम्भ में प्रथम संस्करण में दी गयी महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना को अविकल रूप से दिया गया है। पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक और मुद्रण सुस्पष्ट है। अच्छे कागज पर लगभग ५०० पृष्ठों में मुद्रित और पक्की जिल्द के इस ग्रन्थ का मूल्य सदुपयोग एवं पठन-पाठन रखा गया है। महापुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़ने में सभी को रुचि होती है। हम सभी चावपूर्वक इसे पढ़ते हैं किन्तु जहां उनके आदर्शों को जीवन में उतारने की बात आती है वहां हमारा स्वार्थ आगे आ जाता है और दृढ़निश्चय के अभाव में हम अपने स्वार्थों के शिकार हो जाते हैं। यदि हम महापुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर उनके बतलाये गये आदर्शों का एक अंश मात्र भी अपने जीवन में उतार सकें तो हमारा भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा। हमें विश्वास है कि पाठक गण इस पुस्तक का अध्ययन और मनन कर इसमें बताये गये मार्ग पर चल कर अपने जीवन को गौरवान्वित करने का प्रयास करेंगे। - साधना पथ का महायात्री प्रज्ञामहर्षि श्री सुमनमुनि जी महाराज : प्रस्तोता - मुनि श्री सुमंतभद्र 'साधक' एवं मुनि श्री प्रवीण कुमार; संपादक - श्री विमल जैन 'आशु'; आकार - डिमाई, पृष्ठ- २२४, प्रथम संस्करण - २००१ ईस्वी प्रकाशकआचार्य सोहनलाल जैन ज्ञान भंडार, श्री महावीर जैन भवन, महावीर मार्ग, बस्तीराम, अम्बाला शहर (हरियाणा); मूल्य - स्वाध्याय, चिन्तन-मनन । बाजार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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