Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ १०० ६) राष्ट्रीय हितों की रक्षा व पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर ही अपनी आजीविका चलाना होगा। ये संकल्प कोई कठिन नहीं हैं, यह शताब्दी खुशनुमा हो या धुंध भरी, यह हमको ही तय करना है। जल, जंगल, जमीन ये तीन पर्यावरण के आधार हैं। जैन धर्म में इनके पोषण और संयमपूर्वक उपयोग का व्यापक और विविध रूपों में उल्लेख है। हमारे देश के ४१वें संविधान संशोधन द्वारा प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अन्तर्गत वन, झील, वन्य जीव आदि हैं, उनकी रक्षा करे व पर्यावरण संवर्धन में सहयोग देवे। वस्तुतः हमें वही करना है कि जो हमारे जैनाचार हैं, हम उनके अनुसार आचरण करें। जो जैन धर्म का पालन करता है, वह पर्यावरण संतुलन का पोषक व समर्थक है। इस प्रकार जैन धर्म के सिद्धान्त ही प्रकृति के सन्तुलन व पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं। अगर मानव प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है, पर्यावरण को प्रदूषित करता है, तो समझ लीजिये, प्रकृति को भी हमें नष्ट करना आता है। अत: अपने जीवन को धर्म से परिपूरित कीजिये, संसार में बनी हर चीज का उपयोग सोच समझ कर कीजिये। और अन्त में यही अहिंसक है व्यवहार, सबसे प्रीत दया और प्यार। पेड़ लगाओ, प्राण बचाओ, जीव दया का व्रत अपनाओ। धुआँ-धुआँ, आकाश भरेंगे, अपना सत्यानाश करेंगे। पृथ्वी को क्यों नर्क बनायें, ___वहाँ गंदगी न फैलायें। अमृत जैसा जल अनमोल, एक बूंद भी व्यर्थ न ढोल। जैन धर्म है महान् ---- पर्यावरण संरक्षण का है यही अभियान। इतिशुभम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136