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सुख-दुःख की अनुभूति करते हैं। इसलिए मुझे किसी प्राणी को पीड़ित नहीं करना चाहिये, सताना नहीं चाहिए, उनका अधिकार नहीं छीनना चाहिए, उन्हें नहीं मारना चाहिए। ऐसे विचार आने से जीवन में अहिंसा और संयम का विकास हो सकता है। इन छ: जीव- निकायों को अपनी आत्मा के समान समझे। सभी प्राणियों के साथ मित्रता का व्यवहार करे।
पानी, हवा और वनस्पति पर्यावरण के प्रमुख घटक हैं। आज ये तीनों प्रदूषित हैं। पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है, जीने के लिए प्राणवायु नहीं है और जंगलों को नष्ट किया जा रहा है। प्रतिदिन करोड़ों टन औद्योगिक रसायनयुक्त कचरा, मनुष्य का मल एवं शवों को नदियों में फेंका जा रहा है जिससे नदियों का पानी विषाक्त हो रहा है। दूसरी ओर घरों में पानी का असीमित उपयोग हो रहा है। पानी का मूल्य नहीं समझा जा रहा है। हम पानी के मूल्य को समझें एवं उसका दुरुपयोग न करें, यह जरूरी है।
साबरमती आश्रम के सुरम्य वातावरण में बैठे महात्मा गांधी ने अरुणोदय की पावन बेला में काका कालेलकर से कहा, एक लोटा पानी लाओ। कालेलकर जी पानी लेकर आए। गांधी जी ने उस एक लोटे पानी से हाथ साफ किए, मुँह धोया, पैरों का प्रक्षालन किया और बचे हुए पानी से तौलिए को धो लिया। इस प्रवृति को देखकर काका कालेलकर से रहा नहीं गया, उन्होंने गांधी जी से कहा - महात्माजी आपके सामने विशाल साबरमती नदी बह रही है और आप पानी की इतनी कंजूसी करते हैं ? गांधी जी ने कहा- “साबरमती नदी पर मेरा एकाधिकार नहीं है, देश के करोड़ों व्यक्तियों का अधिकार है। यदि मैं अपनी आवश्यकता से ज्यादा पानी का उपयोग करता हूँ तो मुझे चोरी लगती है। गांधी जी के जीवन का यह प्रसंग हमें संयमयुक्त आचरण की ओर प्रेरित करता है।" कहाँ गांधीजी के आदर्श, कहाँ आज के लोगों की वर्तमान जीवनचर्या । दैनिक क्रिया कलापों में भी संयम को यथोचित स्थान नहीं है।
पानी का नल खुला है, आप दन्त मंजन कर रहे हैं, कितना पानी बेकार जाता है, उसे पुनः बन्द कर पानी को बचा सकते हैं। व्यक्ति की धारणा है शरीर पर ज्यादा पानी डालने से अच्छा स्नान होता है, लेकिन घर्षण से अच्छा स्नान होता है। घर की साफ-सफाई में आज पानी का बहुत ज्यादा अपव्यय हो रहा है। भूमिगत जल के अन्धाधुन्ध दोहन के कारण पानी कम होता जा रहा है। भू-वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि आगामी पचास वर्षों में जल संकट का सामना करना पड़ेगा। अधिक दोहन के कारण जल स्तर नीचे जा रहा है। सीमा लंघन का परिणाम अंततः दुःखद ही होता है।
श्वांस लेने के लिये आज शुद्ध प्राणवायु (आक्सीजन) भी नहीं है। वायु
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