Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 92
________________ 86 कार्बन डाई आक्साइड तथा अन्य हानिकारक गैसों का अनुपात बढ़ने से वायुमण्डल में "ग्रीन हाउस" प्रभाव पैदा होता है, जिससे वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। .. पृथ्वी के वायुमण्डल में अवस्थित सुरक्षा कवच “ओजोन' की सतह में छिद्र हो रहे हैं। वायुमण्डल में ओजोन की एक सतह है जो एक कवच के रूप में पृथ्वी के चारों ओर उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण तना हुआ है। ओजोन पृथ्वी से लगभग 15-20 कि०मी० ऊंचाई से 55 कि०मी० की ऊंचाई तक विद्यमान है। यह स्फटिक के समान पारदर्शी है। वैज्ञानिक भाषा में इसे “ओजोन स्फियर" कहते हैं। सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों के अवशोषण की इसमें अद्भुत क्षमता है। अपने इसी गण के कारण यह प्राणी-जगत् को जीवित रखने में वरदान सिद्ध हुई है। इसके नाश होने से पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर पहुंचकर चर्म कैन्सर एवं अंधेपन जैसी बीमारियों का कारण बनेंगी और फसलों का उत्पादन घट जाएगा। विभिन्न प्रयोगशालाओं से किए गए अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि पराबैगनी किरणों से उत्पन्न दुष्परिणाम विश्वव्यापी होगें एवं सम्पूर्ण जीव-जगत् इससे प्रभावित होगा। ओजोन की सतह के क्षय के कुछ कारण हैं। उन कारणों में भी प्रमुख कारण है व्यक्ति का भौतिकवादी दृष्टिकोण एवं सुख-सुविधायुक्त जीवनयापन की संकुचित प्रवृत्तियां। वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार ओजोंन की सतह को विघटित करने वाला रसायन है क्लोरोफ्लोरी कार्बन (सी०एफ०सी०) जिसका उपयोग दैनिक जीवन में विभिन्न सुख-सुविधाओं के उपकरणों में होता है। जैसे एयर-कंडीशनर, फ्रीज आदि। अग्निशामक यंत्रों, कीटनाशक दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स और उद्योगों में प्रयुक्त रसायन भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं। तात्पर्य यह है कि आधुनिक सुविधाओं के उपकरण पर्यावरण सुरक्षा में बहुत घातक हैं। पर्यावरण के असंतुलित होने का एक कारण नाभिकीय विस्फोट भी है। यदि कभी नाभिकीय विस्फोटजनित अणु युद्ध हुआ तो सृष्टि संरचना में बदलाव आ जाएगा। तापमान कहीं कम और कहीं ज्यादा हो जाएगा। हिमखण्ड पिघलने लगेंगे जिसमें समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा। चारों ओर पानी ही पानी हो जाऐगा। प्रलयं की सी स्थिति उत्पन्न हो जाएंगी। नाभिकीय विस्फोट से जो दृश्य उत्पन्न होगा वैसा उल्लेख जैनागम भगवती सूत्र में आया है। यद्यपि यह वर्णन परमाणु युद्ध का नहीं है। जैन काल गणना के अनुसार छठे काल में विश्व विचित्र स्थितियों से गुजरेगा। समवर्तक वायु चलेगी। यह वाय इतनी तीव्र गति से चलेगी कि पहाड़ भी प्रकम्पित हो जाएंगे। तीव्र आंधियाँ चलेंगी, आकाश धूल से आच्छादित हो जाएगा, चन्द्रमा अति ठंडा एवं सूर्य अति गर्म हो जाने से तीव्र सर्दी एवं तीव्र गर्मी का वातावरण होगा। वर्षा बीमारियां बढ़ाने वाली होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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