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जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण
श्रीमती सुधा जैन*
प्रस्तावना
जैन धर्म क्या है ? जैन शब्द की विभिन्न परिभाषायें हैं, जो जितेन्द्रिय होता है इन्द्रियों को जीतने वाला होता है वह जिन कहलाता है और उसके अनुयायी जैन कहलाते हैं। जैन धर्म वस्तुत: सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह के सिद्धान्तों का प्रवर्तक, प्रचारक व पालक है। कथनी करनी एक सी करुणापूर्ण विचार,
हरियाली सा शांतिमय जीने का व्यवहार। ज्यों निसर्ग में स्वर्ग सी होती उज्ज्वल धूप,
ऐसा ही आलोकमय होता जैनाचार।। इन्द्रियों को नियन्त्रित रखना, क्योंकि अश्व के समान वेगवती इन्द्रियों पर नियन्त्रण व काम, क्रोध, लोभ, मोह इन चार कषायों पर विजयपताका फहरानेवाला ही सच्चा मानव है, वही जैन है। जीयो और जीने दो, सत्य ही साधना है, मातापिता तीर्थ स्वरूप हैं, संयम ही साधना का सौन्दर्य है, जहाँ इन भावनाओं को ध्यान में रखकर आचरण किया जाता है, वही जैन धर्म है। जैन धर्म अन्धविश्वासों पर आधारित नहीं है। उसमें न तो अन्धानुकरण है, न ही मूढ़ता। जैन धर्म सम्यक् श्रद्धा और ज्ञान पर आधारित है। ____ यदि हम वर्तमान में भारतीय क्षितिज पर उभरे दर्शनों का सांगोपांग अध्ययन करें तो पायेंगे कि जैन धर्म के विकास का आधार ज्ञान है। जैन धर्म में महाव्रत, संयम, तप, नियम की आचार संहिता है, धर्म को सुख रूपी फल का बीज कहा गया है। पर्यावरण क्या है
__ हमारे चारों ओर जो परिवेश है, वातावरण है, वही पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण शब्द परि+आवरण शब्दों से मिलकर बना है, पर्यावरण के अन्तर्गत वह *ग्रूप बी; पत्र व्यवहार का पता - द्वारा श्री श्रीमल जैन, २७४, वसंत विहार कालोनी, कोट रोड, धार (म०प्र०)
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