________________
जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण
कु० अलका सुराणा*
“जो दुर्गति में जाते प्राणी को सुगति में ले जाए वह धर्म है।"
जैन धर्म से आशय है राग-द्वेष विजेता द्वारा प्रतिपादित धर्म। जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त हैं - सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय व अपरिग्रह। इन सिद्धांतों का पालन करने वाला “जैनी' कहलाता है।
सभी धर्मों ने प्रकृति को माता का स्थान दिया है। प्रकृति के सभी तत्व जीवनदायी हैं अतः हम उनका संरक्षण करके ही उऋण हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने पर्यावरण को परिभाषित करने के लिए उसे दो शब्दों में बांटा है - परि+आवरण। हमारे चारों ओर का वातावरण जिसमें हम पलते हैं उसे पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण तीन भागों में बाँटा जा सकता है - भौतिक, सांस्कृतिक और आत्मिक।
भौतिक पर्यावरण में भमि, वाय, जल व ध्वनि आदि सम्मिलित हैं। प्रात: काल स्वीकार करने वाले चौदह नियम भी भौतिक पर्यावरण संरक्षण के ही एक भाग हैं।
सांस्कृतिक पर्यावरण से आशय है संस्कृति तथा इसके संरक्षण से अभिप्राय है संस्कृति का संरक्षण। नव युवा वर्ग पश्चिमी व भारतीय संस्कृति को लेकर दिग्भ्रमित है। पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध से आकर्षित युवा वर्ग भूलता जा रहा है कि सर्वेन्द्रिय संयम तथा मनोनिग्रह युवा वर्ग की पहचान है। यह विडम्बना है कि बहुमूल्य भारतीय संस्कृति का महत्व भुलाया जा रहा है।
आज विश्व में अनेक धर्म व संस्कृतियां प्रचलित हैं। प्रत्येक धर्म व संस्कृति वातावरण के अनुसार परिवर्तित होती रहती है लेकिन किसी दूसरी संस्कृति के द्वारा किया अतिक्रमण सर्वथा वर्जित माना गया है। आज का मानव स्व संस्कृति की ओर परमुखापेक्षी बनकर रह गया है। जैन धर्म में अपरिग्रह के सिद्धांत को मान्यता प्रदान की गई है। आज के भौतिक युग में इस सिद्धांत की उपयोगिता पर कोई संशय नहीं है। आज का मानव स्वार्थ व तृष्णा की तृप्ति के लिए घृणित से घृणित कार्य करने को तैयार रहता है। वह भूल जाता है कि क्षणिक तृप्ति उसकी क्षुधा को और अधिक *ग्रूप ए; पत्र व्यवहार का पता - द्वारा श्री गणपत राज सुराणा, ए १६/२१४, चौपासनी आवासन मंडल, जोधपुर (राज.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org