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परविवाहकरण, अनंग कीड़ा, अपशब्द का प्रयोग, विषय सेवन की तीव्र इच्छा तथा व्यभिचारिणी स्त्री के घर आना-जाना ये सब इस व्रत के अतिचार हैं। इस व्रत का पालन न करने से सामाजिक प्रदूषण फैलता है। इसी का दुष्परिणाम है एड्स के रोगियों की दिन-प्रतिदिन बढ़ती संख्या। इसका समाधान ब्रह्मचर्य व्रत के पालन से ही संभव है, यह व्रत वैयक्तिक, सामाजिक और शारीरिक पर्यावरण की शुद्धि हेतु वरदान है। अत: इन पांच अणुव्रतों में अणुबम जैसे विस्फोटों का शांत करने की सामर्थ्य है। आवश्यकता है अणुव्रत के प्रयोग की।
__ श्रमणों में सप्त गुण एवं समितियों के पालन में सूक्ष्म जीवों के प्रति अहिंसात्मक दृष्टि है। उनके पंचेन्द्रिय निग्रह में निर्विकार भाव का, नग्नत्व में अपरिग्रह का, सामायिक, स्तुति, वंदना में आत्मशुद्धि का, द्वादशानुप्रेक्षाओं के मनन और क्षमादि दस धर्म के अनुशीलन में आत्मोथान का चिंतन समाहित है। अतः श्रावक एवं श्रमणाचार संहिता आचार शुद्धि, भाव शुद्धि और अन्ततः पर्यावरण शुद्धि का पथ प्रशस्त करती है। वैचारिक हिंसा शारीरिक हिंसा से कम नहीं है। युद्धक्षेत्रमें युद्ध तो बाद में लड़े जाते हैं उससे पूर्व युद्ध मस्तिष्क में लड़े जाते हैं। वैचारिक परिग्रह की ग्रन्थि के परिणाम बड़े भयावह होते हैं। इससे बचने का जो उपाय महावीर ने बताया वह है- अनेकान्त दर्शन। मैं जो कहता हूँ वही सही है, ऐसा आग्रह-विग्रह को जन्म देता है। भगवान् ने कहा वस्तु के अनन्त धर्म हो सकते हैं, अनन्त पर्याय हो सकते हैं। उन्हें अनन्त कोणों से देखो- अनन्त चक्षुओं से देखो। आज विश्व में जितनी समस्याएं हैं, उनमें से अधिकांश की पृष्ठभूमि है- मनुष्य की एकान्तिक दृष्टि। हमारी सोच या हमारा विचार ही सही है बाकी मिथ्या ऐसी मान्यता समस्या की उद्गम भूमि है। आज अनेक राष्ट्र आपस में झगड़ रहे हैं- भीषण युद्ध हो रहे हैं। राज्यों के बीच तनाव है। राज्यों का विभाजन हो रहा है। उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल, मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ और बिहार से झारखण्ड अलग हुआ। जिलों का भी विभाजन हो रहा है। विभाजन के बीच वैमनस्य की दीवारें खड़ी हो रही हैं। दुनियां साथ मेल-जोल की बात तो दूर रही, आज हमारे पड़ोसी देश के साथ भी संबंध मैत्री पूर्ण नहीं हैं। भाई-भाई के बीच पारस्परिकता और भ्रातत्व समाप्त होता जा रहा है। सास-बहू के संबंध तनावग्रस्त हैं। फलत: संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं। विभक्त परिवारों की संख्या बढ़ रही है। यह सब क्यों हो रहा है? हमारी भव्य सांस्कृतिक विरासत पर एक के बाद एक प्रश्नचिन्ह क्यों लगते जा रहे हैं? कारण एक ही है हमारा स्वार्थपरक एकान्तिक दृष्टिकोण, ममकार और अहंकार की यह अवतरण भूमि है और जहाँ ये निवास करते हैं वहां विनाश निश्चित है। सभी चीजों को सापेक्षभाव से देखना और प्रत्येक स्थिति में रहे हुए सत्य के अंश का साक्षात्कार करना यही अनेकान्त
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