Book Title: Sramana 2003 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ ७० हिंसा शब्द के दो अर्थ हैं, एक आत्मघात दूसरा परघात। कषायभाव उत्पन्न होते ही आत्मघात हो जाता है। यदि किसी की आयु पूर्ण न हुई हो, पाप का उदय न हुआ हो; कर्म उदीरण अवस्था में न आये हों, तो वह परघात घटित नहीं होगा। लेकिन कषाय जागते ही आत्मघात तो होगा ही। इसलिये पर्यावरण संरक्षण के दोहरे उपाय जैनों ने बताये हैं। जीवादिक षट् कायजीवों की रक्षा करना और कषाय मनोवृत्ति से अपने आपको बचाना। मानव परस्पर और तिखंच से संबंध दयामय बनाये। आंतरिक प्रदूषण पहले उद्गमित होता है बाद में स्थूल हिंसा होती है। जैन धर्म ग्रंथों में अनेक स्थलों पर उद्यानों का निर्देश मिलता है। अन्तकृत दशासूत्र में इस प्रकार उद्यानों के उल्लेख हैं - १) चम्पानगरीमें ईशान कोण में "पूर्णभद्र' नामक [चैत्य उद्याना था, वहाँ अतिरमणीय “वनखंड था। यहाँ एक ही जाति के वृक्ष प्रधान होते थे। २) तीर्थंकर परंपरा से विचरते हुये भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी के बाहर "नंदनवन" नामक उद्यान में पधारे। ३) भद्दिलपुर नगर के बाहर "श्रीवन" नामक उद्यान था। ४) राजगृह नगरी में “गुणशील' नामक उद्यान था। ५) राजगृह नगर के बाहर अर्जुन माली का विशाल बगीचा था। वह नीले पत्तों से आच्छादित होने के कारण आकाश में चढ़े हुए घनघोर घटा के समान दिखाई देता था। उसमें पाँचों वर्गों के फूल खिले हुए थे। वह हृदय को प्रसन्न एवं प्रफुल्ल करने वाला एवं दर्शनीय था। "ज्ञाताधर्मकथासूत्र'' में "नंदमणिकार" ने एक पुष्करणी बनाई थी, उसका वर्णन है। राजा की अनुमति लेकर वास्तुशिल्पी द्वारा नंदमणिकार ने पुष्करणी का निर्माण कराया। राजगृहनगर के. बाहर ईशान कोण में वैभारगिरि पर्वत की तलहटी में पुष्करणी बनाना तय हुआ। चतुष्कोणाकृति समतल जमीनपर पुष्करणी का निर्माण किया गया। मध्य में शीतल जल से भरी हुई बावड़ी बनाई गई। पुष्करणी के चारों ओर "वनखंड" बनवाये । पूर्व दिशा के वनखंड में एक "चित्रशाला' बनवाई। जिसमें काष्ठशिल्प, वस्त्रचित्रकारी आदि का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया गया। उत्तम मणियों से उसको सुशोभित किया गया। दक्षिण दिशा में “भोजनशाला' बनवाई जहाँ कोई भी पथिक अपनी रुचिनुसार भोजन पाता। पश्चिम दिशा में "चिकित्सालय" बनवाया। वहाँ का वातावरण इतना प्रसत्र था कि थकावट भाग जाती थी। फिर उत्तरदिशा में "नापित शाला' खुलवाई। पथिक तेल उबटन से मालिश करा ले। ऐसी संदर योजना थी और कार्य था। पर्यावरण का एक अजोड़ नमूना यह पुष्करणी थी जैसे आजकल Hollyday Resort बनाये जाते हैं। निसर्ग या प्रकृति ही आनंद का स्रोत है। जो यहाँ पा सकते हैं वह कहीं नहीं पायेंगे। Jain Education International onal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136