________________
१८ :
श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६
नगरस्थ जैनमन्दिर
अयोध्या, काशी आदि नगरों की भाँति प्रयाग भी सप्रसिद्ध जैनतीर्थ है। यहाँ शताब्दियों तक जैनधर्म एवं संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार रहा। अत: अनुमान है कि प्रचीन काल में यहाँ जैनमन्दिरों की भरमार रही होगी। परन्तु इस समय केवल आठ-दस मन्दिर और कुछ चैत्यालय ही विद्यमान हैं। इनमें भी अधिकांश नवीन हैं। एकादि स्थलों के उत्खनन से प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्रियों से प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में वहाँ जैनमन्दिर रहे होंगे। लगभग डेढ़-दो सौ वर्षों पूर्व किले की खुदाई में जैनधर्म से सम्बन्धित कुछ तीर्थंकरों एवं यक्ष-यक्षिणियों की पुरातन प्रतिमायें उपलब्ध हुई थीं, जो चाहचन्द मुहल्ले के मन्दिरों में विराजमान हैं। विद्वानों का अनुमान है कि तीर्थंकर प्रतिमाएँ चतुर्थकाल अर्थात् ईसापूर्व छठी शताब्दी के आस-पास की बनी हुई हैं। भूगर्भ से प्राप्त इन कलाकृतियों के आधार पर अनुमान किया जाता है कि प्राचीन काल में उक्त स्थल पर विशाल जैनमन्दिर था, जिसे तत्कालीन किसी महापुरुष ने प्रभुवर की चिरस्मृति में बनवाया होगा। परन्तु यह मन्दिर कब और कैसे नष्ट हुआ, यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर
___ यह मन्दिर चाहचन्द (जीरो रोड) मुहल्ले में है। स्थानीय अनुश्रुतियों के अनुसार इसका निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। यहाँ विराजमान तीर्थंकर मूर्तियाँ पाषाण की
और देवियों की प्राय: धातु-निर्मित हैं। तीर्थंकरों में मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है कहा जाता है कि यह प्रतिमा किले में भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। पंचायती दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर
यह जिनालय पार्श्वनाथ मन्दिर से लगे हुए धर्मशाला के अन्दर है। इसमें अनेक पुरातन प्रतिमायें विराजमान हैं। विद्वानों का अनुमान है कि ये सभी मूर्तियाँ छठी से दसवीं शताब्दी के मध्य विनिर्मित की गयी हैं। प्रयाग संग्रहालय में जैन कलाकृतियाँ
प्रयाग संग्रहालय में कुछ ऐसी पुरातन जैन पुरातात्त्विक सामग्री सुरक्षित है, जिनसे इस जनपद में जैनधर्म एवं संस्कृति के व्यापक प्रचार-प्रसार का परिज्ञान होता है। मूर्तियों में कौशाम्बी से प्राप्त चन्द्रप्रभु (छठी शताब्दी) और सर्वतोभद्रिका (१० वीं शती ) तथा पभोसा से उपलब्ध शान्तिनाथ की प्रतिमा (१२वीं शती) विशेष उल्लेखनीय हैं। यहाँ कुछ मृण्मूर्तियाँ, मनके, आयागपट्ट आदि भी सुरक्षित हैं, जो प्रयाग जनपद में ही उपलब्ध हुए हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org