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श्रमण/ 'जुलाई-सितम्बर/ १९९६
सम्बोधि ध्यान मार्गदर्शिका, लेखक - श्री चन्द्रप्रभ, प्रकाशक - श्रीचन्द्रप्रभ ध्यान निलयम्, दादाबाड़ी, राम बाग, इन्दौर ( म०प्र०), पृ०-५६, मूल्य ५ रु० ।
प्रस्तुत पुस्तिका 'सम्बोधि ध्यान मार्ग दर्शिका' के रचयिता श्री चन्द्रप्रभ जी हैं। पुस्तक के नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें सम्बोधि ध्यान की प्रक्रिया को विवेचित किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि ध्यान से पहले योगाभ्यास करना आवश्यक है जिसे पाँच चरणों में पूरा करना चाहिए - (१) सन्धि संचालन - ३ मिनट, (२) स्थिर दौड़ - २ मिनट, (३) योगासन - ३ मिनट, (४) योगचक्र-४ मिनट तथा (५) श्वसन- ३ मिनट । इससे सम्बन्धित चित्र भी दिए गए हैं। साथ ही प्राणायाम, चैतन्य - ध्यान, भाव-उत्सव, सम्बोधिभाव, अन्तर सजगता आदि के भी विवेचन हुए हैं। पुस्तिका के अन्त में 'ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण', चित्र के द्वारा बताया गया है। इस विवेचनों एवं चित्रों से किसी भी नए साधक को 'ध्यान' आदि की जानकारी आसानी से हो सकती है। अतः यह पुस्तिका योगाभ्यास में रुचि रखने वालों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। पुस्तक की रूपरेखा एवं छपाई सुन्दर है। इसके लिए लेखक एवं प्रकाशक को बधाई है।
डॉ॰ बशिष्ठ नारायण सिन्हा
मुक्ति का मनोविज्ञान, लेखक - श्री चन्द्रप्रभ, प्रकाशक - श्री जितयशा फाउण्डेशन, ९ सी एस्प्लनेड रो ईस्ट, कलकत्ता- ६९, पृ० ११२, मूल्य १२ रुपए ।
'मुक्ति का मनोविज्ञान' के रचनाकार श्री चन्द्रप्रभ जी हैं। इसमें उनके प्रवचन संकलित हैं। इस लघु पुस्तक में मुक्ति मनोविज्ञान, महावीर का महामार्ग, अन्तर्दृष्टि के आठ आयाम, अन्तर आत्मा की पीड़ा, समर्पण की झील : जागरण के कमल, भय प्रलोभन : अध्यात्म के अवरोधक शीर्षकों के अन्तर्गत विविध आध्यात्मिक तथ्यों को विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। महावीर का महामार्ग मोक्षमार्ग है जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र का समन्वित रूप है। नए उदाहरणों के माध्यम से मोक्षमार्ग को बताते हुए कहा गया है- दर्शन भट्टी है, ज्ञान रोटी है और चारित्र उस रोटी को पचाना है। दर्शन की भट्टी में ज्ञान की रोटी सिकती है और चारित्र के द्वारा उस रोटी का पाचन होता है। मनुष्य की चेतना के विवेचन में उसकी तीन अवस्थाएँ बताई गई हैं- (१) बाहर तथा भीतर से मूर्च्छित, (२) बाहर से जागृत परन्तु भीतर से मूर्च्छित तथा (३) बाहर तथा भीतर दोनों में ही जागृत । कहानियों के माध्यम से कठिन धार्मिक एवं दार्शनिक तथ्यों को सहज बनाने की विधि सराहनीय है। पुस्तक की रूपरेखा एवं छपाई सुन्दर है। इसके लिए लेखक और प्रकाशक को बधाई है।
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डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
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