Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 106
________________ श्रमण/ / जुलाई-सितम्बर/ १९९६ जिसे विषय की दृष्टि से तीन विभिन्न भागों में विभाजित किया गया है। इसके प्रथम भाग में इतिहास है, जिसमें वैदिक संस्कृति से लेकर आधुनिक परिवेश तक के विचारों का शोधात्मक दृष्टि से दिशा-निर्देश है। द्वितीय भाग में साहित्य, सङ्गीत एवं कलाविषयक आठ आलेख हैं। जिनसे कला एवं साहित्य के क्षेत्र में किए गए महत्त्वपूर्ण प्रयासों का पता चलता है एवं तृतीय भाग में प्रतियोगिता में पुरस्कृत उन चार आलेखों को सम्मिलित किया गया है, जो अखिल भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् द्वारा अपने स्वर्ण जयन्ती महोत्सव के अवसर पर अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत किए गए हैं। स्मारिका में प्रकाशित पुरस्कृत लेखों के अतिरिक्त भी अनेक लेख ऐसे हैं जो प्रशंसनीय हैं, यथा- जैन श्रमण संस्कृति की प्राचीनता, वैदिक पुराणों में ऋषभ वर्णन, भगवान् आदिनाथ, भारतीय संस्कृति के सूत्रधार शिवस्वरूप ऋषभदेव, राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास में जैनधर्म का योगदान आदि । १०४: प्रस्तुत कृति के अध्ययन से सामान्यजनों को एवं शोधार्थियों को तथा जैन धर्म दर्शन के प्रति जिनका अनुराग है उनके लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। इसका सम्पादन, प्रूफ संशोधन, एवं मुद्रण कार्य भलीभाँति किया गया है। पुस्तक का आवरण सुन्दर है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी श्री भक्तामर विधान- राजमल पवैया, प्रकाशक- भरत पवैया, प्रथम संस्करण - वीर सं०२५२२, मूल्य - सोलह रुपये, पृष्ठ- १३६, आकार - डिमाई । आचार्य मानतुंग द्वारा रचित भक्तामर काव्य एक भक्तिप्रधान काव्य है। इसी भक्तामर काव्य को रुचिकर बनाने के लिए विधान पूजन के साथ भक्तामर के दो और पूजन भी जोड़ दिए गए हैं। साथ ही ऋषभदेव पूजन, ऋषभ जयन्ती पूजन और ऋषभदेव सम्बन्धी अक्षय तृतीया पूजन एवं अष्टापद कैलाश पूजन देकर इसे उपयोगी बनाया गया है। इसके बीजाक्षर एवं ध्यानसूत्र महाराष्ट्र की क्षुल्लिका श्री सुशीलमति जी एवं सुव्रता जी द्वारा रचे गए हैं। मुमुक्षु साधकों के लिए पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक की निर्दोष छपाई के लिए मुद्रक एवं सम्पादक धन्यवाद के पात्र हैं। डॉ॰ जयकृष्ण त्रिपाठी नवनीत, ऋषि प्रकाशन, झाँसी, प्रथम संस्करण १९९६, मूल्य- १५, आकार - डिमाई, पृष्ठ- ७४/ मुनि श्री क्षमासागर जी, ऐलकद्वय श्री उदारसागर जी एवं सम्यक्त्व सागर जी की पुनीत उपस्थिति में करगुवाँ जी झाँसी में जैन विचार संगोष्ठी का संयोजन किया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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