________________
श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६
: १०५
इसमें धर्म को विज्ञान से एवं विज्ञान को धर्म से जोड़ने का एक स्तुत्य प्रयास किया गया है। चूँकि इस पुस्तक में देश के जाने-माने विद्वानों के लेख संकलित हैं इसलिए नए शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय हो जाती है। पुस्तक का मुद्रण कार्य निर्दोष है एवं साज-सज्जा आकर्षक है।
डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी
प्रर्युषण पर्व पर विशेष
मानवधर्म के दशलक्षण
क्षमा धर्म का मर्म है, मानवता की शान । मार्दव मान का त्याग है, विनय से बनें महान् ।। आर्जव से ऋजुता मिले, छल-कपट की हान । सत्यमेव जीवन भला, है धर्म का प्रान ।। शौच लोभ को मेंटता, संतोष सुख की खान् । संयम से हर व्रत पलें, श्रावक-मुनि पहचान ।। त्याग से आवै आत्मबल, और धर्म का ज्ञान । तप पालें श्रावक सुधी, अपनी शक्ति प्रमान ।। अकिंचन से सब मिले, रत्नत्रय गुण खान । ब्रह्मचर्य के तेज से, मिले मुक्ति का धाम ।। धर्म के दशलक्षण रतन, धारै जो पुण्यवान् । इस भव से सब दुःख नशैं, परभव बने महान् ।।
श्रीमती डॉ० मुन्नी जैन पार्श्वनाथ विद्यापीठ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org