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श्रमण/ 'जुलाई-सितम्बर/ १९९६
प्रवाहित होती है। " जीवन सबसे ऊँचा है, पर उससे भी ऊँचा, वे मूल्य हैं, जिन्हें आत्मसात् करने के लिए व्यक्ति को निरन्तर संघर्ष करना पड़ता है। इस तरह लेखक ने आध्यात्मिक पक्षों को उजागर किया है। इसके लिए लेखक साधुवादाह है। पुस्तक की रूपरेखा सुन्दर है। आध्यात्म प्रेमी पाठक इस पुस्तक का स्वागत करेंगे।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
लघुत्रयी मंथन सम्पादक - डॉ० जयकुमार जैन एवं पं० अरुण कुमार शास्त्री, प्रकाशक- सकल दिगम्बर जैन समाज, सेठ जी की नशिया, ब्यावर (अजमेर, राजस्थान) प्रथम संस्करण १९९५, मूल्य-सत्तर रुपये मात्र ।
महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा रचित लघुत्रयी (सुदर्शनोदय, दयोदय, समुद्रदत्त) पर आयोजित 'आचार्य ज्ञानसागर राष्ट्रीय संगोष्ठी' में अनेक विद्वानों द्वारा विविध शोधपत्रों का प्रस्तुतीकरण किया गया। विभिन्न विद्वानों ने विविध विषयों को लेकर जो अपने बुद्धि का मन्थन किया उसी के परिणाम से निकले नवनीत का संग्रह इस 'लघुत्रयी - मंथन' नामक पत्रिका में किया है। वैसे तो पत्रिका का विहगवेक्षण करने से यही प्रतीत होता है कि विद्वान् सम्पादकों ने पत्रिका में उन्हीं निबन्धों को समाविष्ट किया है जो छात्रोपयोगी अथवा समाजोपयोगी हैं, फिर भी उन्होंने आचार्य श्री के निष्कर्ष को संकलित कर इसमें जो स्थान दिया है वह अंश पत्रिका के महत्त्व को मात्र बढ़ाता ही नहीं बल्कि समाज को उद्बोधित करने में भी सहायक है। इसके लिए सम्पादकद्वय बधाई के पात्र हैं। पत्रिका में प्रकाशित छाया चित्र भी इसकी उपयोगिता को बढ़ाने में सहायक है। आकर्षक आवरण में तैयार की गयी इस पत्रिका का मुद्रण सुन्दर एवं निर्दोष । उक्त सभी तथ्यों को स्मरण कर पत्रिका संग्रहणीय है ।
है।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
सागर मन्थन, लेखक - आचार्य श्री विद्यासागर जी, प्रकाशिका - श्रीमती पुष्पा देवी, द्वारा - श्री सुभाषचन्द्र जैन, मै० गुरदयाल मल चिरंजीलाल जैन, चाँद मार्केट, खजांचियान, हिसार - १२५००। (हरियाणा), पृ० ३६०, कीमत- पठन- चिन्तन-मनन ।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'सागर मन्थन' के रचयिता आचार्य श्री विद्यासागर जी वर्तमान जैन जगत् के जाने-माने आचार्य एवं चिन्तक है। कर्नाटक प्रदेश में जन्मे हुए तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्र से आये हुए आचार्य श्री ने हिन्दी भाषा पर जिस तरह अधिकार प्राप्त कर लिया है, साधना के क्षेत्र में भी उनकी उसी तरह की पैठ है। वे साधक और चिन्तक के अतिरिक्त कवि भी हैं। उनकी रचनाएं संस्कृत एवं हिन्दी के साथ-साथ प्राकृत, बंगला, अंग्रेजी तथा कन्नड़ में भी मिलती हैं।
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