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श्रमण / जुलाई-सितम्बर / १९९६
बिन सुधारस मुक्ति नाहि, लेखक मुक्तिरत्न सागर, प्रकाशक - श्री अक्षय प्रकाशन, पता - श्री रमणीक लाल सलोत, २०४ श्रीपाल नगर, १२ हार्कनेस रोड, वालकेश्वर, मुम्बई - ४००००५, पृ० ११२, मूल्य २५ रुपए ।
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'बिन सुधारस मुक्ति नाहि' के रचयिता मुक्तिरत्न सागर जी हैं। पुस्तक के नाम से ही यह ज्ञात होता है कि इसमें उस सुधारस का विश्लेषण हुआ है, जिससे मुक्ति मिलती है । उस सुधारस को प्राप्त करने के लिए श्रवण, मनन तथा आचरण आवश्यक हैं जो क्रमशः तृप्तिदायक, पुष्टिदायक और मुक्तिदायक हैं। सत्य सबसे बड़ा तथ्य है जिसे साधु प्राप्त करते हैं, जिनके विषय में कहा गया है
यथा चित्ते तथा वाचे, यथा वाचे तथा क्रिया ।
चित्ते वाचे क्रियायां च साधूनामेकरूपता ।।
इसी तरह सम्पूर्ण पुस्तक में विविध धार्मिक एवं नैतिक उपदेश विवेचित हैं जो मुक्ति मार्ग दर्शक हैं। यह पुस्तक धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । पुस्तक की छपाई आदि सुन्दर है । पाठक इसका स्वागत करेंगे। लेखक तथा प्रकाशक को बधाई है।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
जैन साहित्य समारोह, भाग-४, प्रकाशक- श्री महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई । प्रस्तुत पुस्तक उन लेखों का सङ्कलन है जो तेरहवें जैन साहित्य समारोह में पढ़े गए थे । इसमें सिद्ध परमात्मा, तमिल जैन कृति, हेमचन्द्राचार्यकृत योगशास्त्र में ब्रह्मचर्य की भावना, पुण्यदन्ती राजगृह आदि निबन्ध, आध्यात्मिक, नैतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक सभी पक्षों को प्रकाशित करने वाले हैं। संगोष्ठियों से साहित्य का विकास तो होता ही है, उनमें पढ़े गए निबन्धों के प्रकाशन से अन्य लोग भी जो संगोष्ठी में भाग नहीं ले पाते हैं, लाभान्वित होते हैं। इसके लिए संयोजक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं ।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
मनुष्य का कायाकल्प, लेखक - श्रीचन्द्रप्रभ सागर, प्रकाशक - श्री जितयशा फाउन्डेशन, ९सी, एस्प्लनेड रो ईस्ट, कलकत्ता- ६०००६९, पृ० १८७, मूल्य- २५ रुपए मात्र ।
'मनुष्य का कायाकल्प' पुस्तक के रचयिता श्री चन्द्रप्रभजी एक युवा मुनि, विद्वान् एवं विचारक हैं। अपने चिन्तन-मनन के फलस्वरूप वे हमेशा धार्मिक, दार्शनिक तथ्यों को उजागर करने में लगे रहते हैं। उनकी प्रस्तुत रचना उनके उन व्याख्यानों या उपदेशों का संकलन है जो उन्होंने ध्यान शिविर के समय दिए थे। प्रस्तुत रचना में गुरु के द्वारा शिष्यों को नमन करने की चर्चा है जिससे समत्व भाव पर प्रकाश पड़ता है। शिष्य और
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