Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 97
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ : ९५ पूजन-विधियाँ पद्याकार में प्रस्तुत की गई हैं। इससे स्पष्ट होता है कि ग्रन्थ के रचयिता का उद्देश्य सिद्धान्त को व्यवहार रूप देने का है। आचार्यों ने जो विभिन्न आध्यात्मिक तथ्यों को अपनी रचनाओं में प्रकाशित किए हैं उनके सही उपयोग तो तभी हो सकते हैं जब उन्हें अच्छी तरह समझकर उनके अनुकूल जीवन व्यतीत किया जाए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पवैया जी ने श्री समयसार विधान की रचना की है। कहा जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्द की अन्य रचनाओं में जो बातें दुरूह लगती हैं उन्हें समयसार में सरलता के साथ प्रस्तुत किया गया। लेकिन श्री पवैया जी ने उन्हें हिन्दी पद्य रूप देकर और सरल एवं रुचिकर बना दिया है। ऐसा करके उन्होंने दिगम्बर मान्यता में विश्वास रखने वालों का तो उपकार किया ही है, अन्य लोगों के लिए भी समयसार जैसी अनुपम कृति को समझने का सुगम मार्ग प्रस्तुत किया है जैसे नगरी का वर्णन हो तो नप ना वर्णन होता। त्यों देह संस्तवन हो तो केवलि संस्तवन न होता ।। मत करो व्यक्ति की पूजा इससे लाभ न होगा। तुम करो गुणों की पूजा तो सच्चा वन्दन होगा।। इस उपयोगी रचना के लिए लेखक तथा प्रकाशक आदि बधाई के पात्र हैं। आशा है धर्मानुरागीजन इसका स्वागत करेंगे। .. डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा राजप्रश्नीय सूत्र का सारांश, लेखक-आगम मनीषी तिलोक मुनि, प्रकाशक-आगम नवनीत प्रकाशन-समिति, सिरोही, पृष्ठ-८०, मूल्य-१०रु० । राजप्रश्नीय का सारांश तथा नंदीसूत्र की कथाएं के रचयिता आगम मनीषी तिलोक मुनि जी हैं। राजप्रश्नीय सूत्र के दो भाग हैं- प्रथम भाग में सूर्याभ देव और उनकी सम्पूर्ण दैवी ऋद्धि सम्पदा आदि के वर्णन हैं। द्वितीय भाग में राजा प्रदेशी के सांसारिक तथा अधार्मिक जीवन के वर्णन हैं। उसमें बताया गया है कि किस प्रकार कोई श्रमणोपासक आत्मकल्याण कर सकता है। नन्दीसूत्र में कथाओं के माध्यम से मानव जीवन को मर्यादित करने का मार्ग दिखाया गया है। इसमें औत्पातिक बुद्धि, वैनयिकी बुद्धि, कार्मिक बुद्धि तथा परिणामिकी बुद्धि के विवेचन मिलते हैं। मुनिश्री ने उपदेशपूर्ण कथाओं को संक्षिप्त रूप में तथा सरल हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करके सामान्य लोगों के लिए सराहनीय कार्य किया है। आशा है पाठक इसका स्वागत करेंगे। पुस्तक की रूप रेखा अत्यन्त सुन्दर और छपाई स्पष्ट है। इसके लिए लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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