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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६
के समक्ष उपस्थित करना और महाराज साहब सभी समस्याओं के समुचित समाधान प्रस्तुत करते हैं। कठिन विषयों को सरल ढंग से विवेचित करने का यह एक सुन्दर मार्ग है। जो सामान्य पाठकों के लिए अति हितकारी है। किन्तु पुस्तक को आकर्षक बनाने के उद्देश्य के कारण इसकी कीमत बढ़ गई है, जो सामान्य लोगों के लिए सम्भवत: खरीदने में कठिनाई उत्पन्न कर सकती है। फिर भी लेखक और प्रकाशक इस कार्य के लिए धन्यवाद के पात्र हैं।
- डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
तहोमतनामुं, लेखक-पंन्यास रत्नसुन्दर विजय, प्रकाशक-रत्नत्रयी ट्रस्ट, प्रवीण कुमार दोशी, २५८, गाँधी गली, स्वदेशी मार्केट, मुम्बई-४००००२, पृ० १४०, कीमत-४५ रुपए।
तहोमतनामुं के लेखक पंन्यास रत्नसुन्दर विजय जी है। इसमें भी विषय को विश्लेषित करने की पद्धति वार्तालाप वाली ही है। महाराज साहब से विविध प्रश्न किए जाते हैं और वे चिन्तन शीर्षक के अन्तर्गत प्रस्तुत समस्याओं के समाधान बता देते हैं। यह पद्धति रुचिकर है और सामान्य पाठकों के लिए विशेष हितकारी है। यह पद्धति पुरानी है, जब गुरु शिष्य आपस में बात करके ही समस्याओं के समाधान ढूँढ़ते थे और विभिन्न धार्मिक एवं दार्शनिक विषयों का स्पष्टीकरण करते थे। पुस्तक की छपाई और बाहरी रूपरेखा आकर्षक हैं। इसके लिए लेखक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा
श्री समयसार विधान, लेखक-राजमल पवैया, प्रकाशक-भरत कुमार पवैया, तारादेवी पवैया ग्रन्थमाला, ४४ इब्राहिमपुरा, भोपाल, ४६२००१, पृ० ४७०, न्योछावर-२५ रुपए।
आचार्य कुन्दकुन्द की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक को 'समयसार' के नाम से जाना जाता है। उसी के आधार पर श्री राजमल पवैया ने 'श्री समयसार विधान' की रचना की है। ग्रन्थ के शुरू में ही पवैयाजी ने 'कब? क्यों? कहाँ? कैसे?' में जो कुछ लिखा है उससे उनकी आस्था और आत्मविश्वास की जानकारी होती है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में आचार्य कुन्दकुन्द की रचनाएँ-श्री पञ्चास्तिकाय संग्रह, श्री प्रवचनसार, श्री समयसार, श्री नियमसार, श्री अष्टपाहुड आदि के मूल विवेचित विषयों को संक्षिप्त एवं पद्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। किन्तु समयसार को 'समयसार भगवान्' कहा गया है। इसे आचार्य कुन्दकुन्द की रचनाओं में ही सर्वश्रेष्ठ नहीं बल्कि 'आगमों का आगम' भी कहा गया है। मङ्गलाष्टक, मङ्गल पञ्चक, अभिषेक पाठ, पूजा पीठिका, मङ्गल विधान, स्वस्ति मङ्गल, श्री नित्यग्रह पूजन, जयमाला, श्री सीमन्धर पूजन, श्री कल्याणक अर्ध्यावलि आदि
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