Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ : ५३ महात्मा गांधी को जैनदर्शन के 'नय सिद्धान्त' ने भी अत्यधिक प्रभावित किया है। जैनदर्शन आंशिक कथन या निर्णय को 'नय' कहता है। 'नय' दो प्रकार के होते हैं- दुर्नय और सुनय या प्रमाणनय। दुर्नय गलत कथन को कहा जाता है और सुनय या प्रमाणनय सही कथन को। प्रमाणनय के अनुसार सभी व्यक्तियों को अपने-अपने दृष्टिकोण से समझना चाहिए। गांधी जब स्याद्वाद का प्रयोग करते हैं तो वे प्रमाणनय को न लेकर सिर्फ 'नय' को ही लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ वे ठीक वैसे ही लगाते हैं जैसे जैन-दार्शनिक प्रमाणनय में लगाते हैं। गांधी को राजनीतिकक्षेत्र में इससे लोगों को समझने में बड़ी मदद मिली। अनेकान्तवाद की तरह जैनदर्शन के अहिंसा-सिद्धान्त ने गांधी को अत्यधिक प्रभावित किया। जैनदर्शन अहिंसा को मन, वचन और कर्म तीनों दृष्टियों से करने की सलाह देता है। जैनदर्शन की तरह गांधी ने भी अहिंसा का पालन मन, वचन और कर्म से करने की बात की है। १० इसी प्रकार जैनों के पंचमहाव्रतों ने भी गांधी को प्रभावित किया है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के रूप में 'पंचमहाव्रत' का पालन मुक्ति के लिए जैन दर्शन में आवश्यक माना गया है। जिसे गांधी ने भी अपने राजनीतिक चिन्तन के क्रम में पालन किया है। गांधी का असहयोग आन्दोलन, गांवों के पुनरुद्धार और विकेन्द्रीकरण तथा सत्याग्रह सिद्धान्त, ये सभी जैन के आचरण सम्बन्धी सिद्धान्त पर आधारित हैं। इसी प्रकार गाँधी के आदर्श राज्य के रूप में रामराज्य की कल्पना जैनों के सर्वोदय सिद्धान्त पर आधारित है। उपर्युक्त विवेचनों से यह स्पष्ट होता है कि गांधी के मानवतावादी राजनीतिक चिन्तन पर जैनदर्शन का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। कुछ आलोचक यह अवश्य कह सकते हैं कि गांधी के राजनीतिक चिन्तन पर जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्य भारतीय एवं पाश्चात्य चिन्तकों का भी प्रभाव पड़ा है। परन्तु इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि जैनदर्शन के समन्वयवादी सिद्धान्त (अनेकान्तवाद) का ही यह परिणाम है कि वे किसी भी व्यक्ति या सिद्धान्त की सार्थकता को स्वीकार करते हैं जैसा कि जैनियों का कथन है कि न वे किसी से राग रखते हैं और न किसी से द्वेष, बल्कि जिनके भी वचन उपयुक्त लगते हैं, उसे ही वे स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि गांधी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने किसी नवीन दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन न करके केवल प्राचीन जैनदार्शनिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करने का प्रयास किया है। इस प्रकार निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि गांधी का सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन जैनों के आदर्श सिद्धान्त- अनेकान्तवाद, सत्य और अहिंसा तथा नैतिक आचरण सम्बन्धी सिद्धान्त से मूलत: प्रभावित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116