Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 88
________________ ८६ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ और सहज बनाने के लिए श्री राजमल जी ने द्रव्य संग्रह विधान की छन्दोबद्ध रचना की। यदि कोई भी मुमुक्षु ध्यानपूर्वक नियमित इसका स्वाध्याय करे तो उसे तत्त्वज्ञान होना निश्चित है। महाराष्ट्र की क्षुल्लिका श्री सुशीलमति जी एवं क्षल्लिका श्री सव्रता जी ने इसके बीजाक्षर एवं ध्यानसूत्र लिखे हैं। तत्त्वज्ञान की दृष्टि से पुस्तक अत्यन्त उपयोगी एवं संग्रहणीय है। पुस्तक का मुद्रण कार्य एवं साज-सज्जा सन्तोषजनक है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी समयसार का दार्शनिक चिन्तन, अनुवाद - डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर', प्रकाशक - श्री दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति, दिल्ली - ६५, प्रथम संस्करण - १९९५, मूल्य - ३५, पृ० १४१, आकार - डिमाई। प्रो० डॉ०ए० चक्रवर्ती द्वारा लिखित समयसार की अंग्रेजी प्रस्तावना का डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' द्वारा हिन्दी रूपान्तरण ‘समयसार का दार्शनिक चिन्तन' नामक पुस्तक में किया गया है। इस ग्रन्थ में पाश्चात्त्य विचारधारा में आत्मा की कल्पना, भारतीय विचारों में आत्मा, संहिता ब्राह्मणों में औपनिषदिक विचारों के मूल तत्त्व और जैन धर्म, उसका समय और सिद्धान्त नामक विभिन्न शीर्षकों को आधार बनाकर विषय का विभिन्न दृष्टिकोणों से परिशीलन किया गया है। ज्ञातव्य है कि जब किसी भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद किया जाता है तो अनुवाद कार्य में उसी तरह के भाव ला पाना कितना कठिन होता है। इस दृष्टि से अनुवादक का यह प्रयास सराहनीय है। पुस्तक की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें पाश्चात्त्य दार्शनिकों का मन्तव्य भी समाहित है, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। पुस्तक का मुद्रण कार्य एवं साज-सज्जा प्रशंसनीय है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी जैन धर्म संक्षेप में प्रो० एल०सी०जैन, श्री नरेश जैन, प्रकाशक-श्री दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति, डी०-३०२, विवेक विहार, दिल्ली-६५, प्रथम संस्करण १९९५, मूल्य-२५ रु०, पृष्ठ-१०२, आकार-डिमाई। आचार्य श्री कुन्दकुन्द द्वारा रचित श्री पंचास्तिकायसार की अंग्रेजी भाषा में प्रो०ए० चक्रवर्ती नयनार द्वारा पूर्व में लिखी प्रस्तावना का हिन्दी रूपान्तर प्रो० एल०सी०जैन एवं श्री नरेश जैन द्वारा 'जैन धर्म संक्षेप में' नामक पुस्तक में किया गया है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि जहाँ इसमें कुन्दकुन्दाचार्य के जीवनवृत्त तथा तात्कालिक परिस्थितियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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