Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 92
________________ ९० ::. श्रमण/जुलाई-सितम्बर / १९९६ पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय 1 एकै आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।। मुंडिये मुंडिय मुंडिया सिर मुंडिउ चित्तुण मुंडिया । चित्तहं मुडणु जिंकमउ संसारहं खंडणुतिं कियउ ।। केंसों कहा विग्गरिया जौ मुड़ै सौ बार । मन को काहे न मुंडिये जामें विषै विकार ।। वय तप संयम मूलगुण मूढहं मोक्खुण वुत्तु । जाव ण जाणइ एक्क पर, सुद्धउ भाउ पवित्तु ।। तित्यहिं तित्यु भमंताहं मूढ़हं मोक्खुण होई । किया जप किया तपु संजमो, किया वरतु किया असनानु । जब लगि जुगति न जानीए भाव भगति भगवानु । तीरथ करि करि जग मुवा डूंधे पाणी न्हाइ । मणु मिलियउ परमेसरहो पर मेसरु वि मणस्य । विणि वि समरस हुइ रहिय पुज्जु चढ़ावउं कस्स ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only - कबीर - मुनिराम सिंह - कबीर — जोइन्दु मुनि - कबीर — जोइन्दु मुनि - कबीर — मुनि राम सिंह www.jainelibrary.org

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