Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 53
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ : ५१ आधारित है। जैन-दर्शन में नैतिक आचरण के लिए जिन 'व्रतों' का पालन आवश्यक है उसे गांधी भी राजनीतिक क्षेत्र में नैतिक आचरण के लिए आवश्यक मानते हैं। वस्तुतः गांधी ने किसी नवीन दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन न करके केवल प्राचीन जैनदार्शनिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करने का प्रयास किया है। गांधी ने स्वयं स्वीकार किया है कि संसार को सिखाने के लिए मेरे पास कुछ भी नया नहीं है। सत्य और अहिंसा बहुत प्राचीन सिद्धान्त है जिसका यथासंभव विस्तृत रूप में मैंने केवल प्रयोग करने का प्रयास किया है। ___ महात्मा गांधी के ऊपर जैन-दर्शन के अनेकान्तवादी और अहिंसावादी विचारों का प्रभाव बाल्यावस्था से ही पड़ा था। गांधी का पारिवारिक वातावरण ही ऐसा था जहाँ जैनदर्शन का प्रभाव था। गांधी के पिता के वैष्णव होने के बावजूद उनका सम्पर्क जैन मुनियों के साथ था। जैन मुनि गांधी के घर पर प्राय: आते रहते थे तथा उनके पिता से धर्म सम्बन्धी व्यावहारिक वार्ता करते थे जिसका प्रभाव गांधी के ऊपर पड़ा। गांधी ने स्वयं अपनी आत्मकथा में लिखा है- “जैनभिक्ष प्राय: मेरे घर पर पिता जी से मिलने आते थे तथा भोजन भी करते थे। वे धर्म सम्बन्धी तथा अन्य विषयों पर वार्ता भी किया करते थे।'' ___गांधी का जन्म गुजरात प्रान्त में हुआ था जो जैनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है। चूंकि गुजरात की भूमि जैनियों से प्रभावित भूमि थी, अत: इस भूमि पर गांधी जन्म लेने के कारण जैनों के विचार से अछूते नहीं रहे।३ गोपीनाथ धवन ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है- "भारत के किसी भी प्रान्त के ऊपर जैन-दर्शन का उतना प्रभाव नहीं था जितना कि गुजरात के लोगों पर था, जहाँ गांधी का जन्म और विकास हुआ।"४ महात्मा गांधी को जीवन के आरम्भ में जैन-दर्शन का ही शास्त्रीय ज्ञान हुआ। इसके दो कारण हैं- प्रथम जैसा कि पहले लिखा गया है, उनके जन्म स्थान के आस-पास सदियों से जैन विचारधारा का बहुत प्रचार था। द्वितीय यह कि उन्हें श्रीमद्राजचन्द्र भाई से बड़ी प्रेरणा मिली थी, जो उत्कृष्ट जैन साधक थे।५ बाल्यावस्था में इन्हीं दो स्रोतों से गांधी को जैन विभज्यवाद की जानकारी हुई और उन्होंने जैन-तत्त्ववाद में विश्वास किया। ___गांधी जी अपने पड़ोसियों और खासकर अपनी मां से 'सत्यमेव जयते' और 'अहिंसा परमो धर्मः' का मन्त्र सुना करते थे। सत्य और अहिंसा का सिद्धान्त यों तो सम्पूर्ण हिन्दू-समाज को मान्य है, फिर भी जिस निष्ठा एवं कठोरता के साथ इस सिद्धान्त का पालन जैन-समाज करता है, वह अद्भुत है। जैन समाज की इसी अहिंसा भावना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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