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श्रमण
महात्मा गांधी का मानवतावादी राजनीतिक चिन्तन
और जैन-दर्शन : एक समीक्षात्मक विवेचन
डॉ. उषा सिंह
. महात्मा गांधी का मानवतावादी राजनीतिक चिन्तन परम्परावादी भारतीय-दर्शन
और संस्कृति का परिणाम है। इनके राजनीतिक चिन्तन पर वैष्णव धर्म, बौद्धधर्म, ईसाईधर्म तथा अन्य धर्मों का प्रभाव तो पड़ा ही है, किन्तु इन सभी धर्मों की अपेक्षा जैनधर्म या दर्शन का प्रभाव विशेषरूप से देखने में आता है क्योंकि जिस ‘सत्य-अहिंसा' के आधार पर गांधी ने अपने राजनीतिक विचार की नींव दी है, वह जैन-दर्शन से अत्यधिक प्रभावित है। राजनीति गांधी को धर्म और आचारशास्त्र के एक अंग के रूप में मान्य है। राजनीति को धर्म और आचारशास्त्र पर आधारित करने में गांधी का एक मात्र उद्देश्य यही रहा है कि इसके द्वारा मानव-सेवा हो सकती है। राजनीति मानव सेवा करने का एक शस्त्र है। अत: गांधी राजनीति को धर्मसम्मत कर मानव-सेवा करना चाहते थे। यह तभी हो सकता है जब प्रत्येक मनुष्य स्वयं अपने कार्यों को शुद्ध बनाये। धर्म मनुष्य की इस शुद्धता के लिए आग्रह ही तो है और यदि प्रत्येक राजनीतिज्ञ इस आग्रह को स्वीकार कर ले तो मानव जाति सुखमय स्थिति में पहुँच सकती है।
गांधी अपनी समस्त राजनीतिक क्रियाओं में इसी आदर्श की अनुमति को सहेजते हैं। उनके लिए सत्य धर्म है, अहिंसा कर्म है और सत्याग्रह साधन है। व्यावहारिक राजनीतिज्ञ के नाते उनके जीवन में इन्हीं तत्त्वों का समावेश मिलता है। उनके चिन्तन में अनैतिक साधनों के लिए कोई स्थान नहीं है। गांधी के चिन्तन में परम्परावादी राजनीतिक चिन्तकों के विचारों से जो भिन्नता हमें देखने को मिलती है, उसका एक मात्र कारण जैनों का मानवतावादी दर्शन कहा जा सकता है। गांधी के राजनीतिक चिन्तन पर इस दर्शन का प्रभाव किस रूप में पड़ा है, इसकी व्याख्या करना ही प्रस्तुत निबन्ध का विषय है।
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