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श्रमण / जुलाई-सितम्बर / १९९६
ज्ञातव्य है कि गाँधी जी के मित्र और मार्गदर्शक जैन जीवन-चर्या के साधक, राजीव भाई मेहता थे । *
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श्रीमद्राजचन्द्र
सर्वोदय का मूलाधार समानता है और उसकी संस्कृति समन्वय की है यही विश्व को भारतीय संस्कृति की देन है। समन्वय आज का युग-धर्म है । सर्वोदय उससे अलग नहीं है । दृष्टि अनेकात्मक है। हम इसे यों समझें
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सर्वोदय-तीर्थ : = समन्वय-तीर्थ अनेकान्त
'अनेकान्त' शब्द 'अनेक' तथा 'अन्त' दो शब्दों से मिलकर बना है—
अनेक + अन्त
अनेक एक से अधिक, दो या फिर अनन्त या सबका या सम्पूर्ण
अन्त = धर्म या गुण (Last result of object or thought) और ये सारी बातें बिना सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र के सम्भव नहीं हैं। समानता और समन्वय की बात सम्यक् में सम्पुष्ट है। इसप्रकार हम देखते हैं कि सर्वोदय में 'त्रिरत्न' और 'अनेकान्त पूर्णरूप से प्रतिफलित होते हैं।
ठीक इसी प्रकार 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के साथ उपयुक्त विचारों का प्रसरण होता है । Dictionary of Philosophy' में क्रान्ति को सामाजिक जीवन का वह बिन्दु माना गया है जहाँ से 'सम्पूर्ण' समाज में परिवर्तन प्रारम्भ होता है । केवल राजसत्ता में परिवर्तन को ही क्रान्ति कहा जाय, यह गलत है। मार्क्स के पहले 'समग्र जीवन' में आमूल परिवर्तन का वैज्ञानिक अध्ययन, शायद नहीं हुआ। प्लेटो की 'रिपब्लिक', गाँधी का 'रामराज्य', थॉमसमूर की 'यूटोपिया' आदि इसी प्रकार के प्रयत्न हैं। 'सम्पूर्ण क्रान्ति' में गाँधी का तेजस्वी पुनर्जन्म' और 'सर्वोदय' का सम्पूर्ण दर्शन समाहित हो गया । विचार क्रान्ति की सारी प्रक्रियाएँ समाहित हो गईं। वैचारिक आधार पर समाज के सभी अंगों में ऐसा परिवर्तन जिसमें समता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व की भावना पर नये समाज की रचना हो और एक नये मनुष्य का निर्माण हो सके। अब इस 'नये मनुष्य' के निर्माण के लिए हमारी भावनाएँ 'समन्वय' की होनी चाहिए। हमारा विचार 'समानता' का और दृष्टि अनेकान्त की ऐसी भावनाएँ, ऐसा विचार और ऐसी दृष्टि हमें 'त्रिरत्न' की सार्वभौम व्याख्या से ही मिल सकती है और इसी सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र की त्रिवेणी से ही सम्पूर्ण समन्वय की भावनाएँ प्रवाहित होंगी। समानता का विचार तरंगित होगा और हमारी दृष्टि बिहंगम होगी, तभी 'नये मनुष्य' का निर्माण सम्भव है। इस नये मनुष्य के निर्माण के लिए जयप्रकाश नारायण ने 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के सात आयाम दिये (यहाँ भी 'सात' सम्पूर्ण विकास / सम्यक् विकास का क्रमशः बोध कराता है ।) सामाजिक क्रान्ति, राजनैतिक क्रान्ति, आर्थिक क्रान्ति, शैक्षिक क्रान्ति, वैचारिक क्रान्ति, सांस्कृतिक क्रान्ति और
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