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श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६
आध्यात्मिक क्रान्ति। इन सात आयामों का उद्देश्य सूरज की सप्तरंगी किरणों से आलोकित होकर सबको जगने, जगाने और जगे रहने का आह्वान है और यह जागृति हमारे अन्दर सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र से ही आयेगी। इस तरह हम देखते हैं कि 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के सारे तत्त्व 'त्रिरत्न' के चिन्तन पर आधारित हैं। बिना इसके न मनुष्य का सामाजिक विकास होगा न आध्यात्मिक। वस्तुत: श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र की यह त्रिविध साधना ही सम्यक् साधना है, जो सामाजिक चिन्तन के 'त्र्यम्बक' गाँधी, विनोबा और जयप्रकाश में प्रसरित होती गई। अन्तत: जैन दर्शन में वर्णित 'त्रिरत्न' की शाब्दिक और तात्त्विक विवेचना के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ‘सर्वोदय' और 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के चिन्तन में प्रवाहित होकर सम्पूर्ण सामाजिक चेतना का बोध कराते हैं। जरूरत है त्रिरत्न को आध्यात्मिक खेमे से बाहर निकालने की, तभी 'सम्यक' शब्द के साथ न्याय होगा और ‘त्रिरत्न' सामाजिक मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित होगा।
सन्दर्भ
१. हिन्दी शब्द सागर, नागरी प्रचारीणी सभा, वाराणसी, १९७३, सं. श्यामसुन्दरदास २. भारतीय दर्शन शास्त्र का इतिहास, डॉ. देवराज, इलाहाबाद, १९४१। पृ. १६९ ३. भारतीय दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त, डॉ. बी. एन सिन्हा, वाराणसी, १९८२पृ.
११४, ४. श्रमण. अक्टूबर-दिसम्बर, १९९५, डॉ. सुरेन्द्र वर्मा का लेख प्र.-१, ५. Dictionary of Philosophy, मास्को , 1967
एम.ए. (अन्तिम वर्ष) अहिंसा, शान्ति और मूल्य शिक्षा विभाग,
पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी - २२१००५
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