Book Title: Sramana 1996 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 38
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/ १९९६ अधिक क्या कहें, यहाँ तक कि डॉक्टरों के संगठन 'अमरीकन मेडिकल अशोसिएशन'३ ने ८३२ पृष्ठों की एक पुस्तक 'फैमिली मेडिकल गाइड' लिखी है जिसमें पृ. २० पर विस्तार से यह बताया है कि जीवन को स्वस्थ बनाये रखने के लिए नियमित ध्यान करना चाहिए । पुस्तक के एक अंश का हिन्दी अनुवाद निम्नानुसार होगा: ३६ : " ध्यान करने की कई विधियाँ हैं किन्तु सभी का एकमात्र लक्ष्य है दिमाग को घबराहट एवं चिन्ताजनक विचारों से शून्य करके शान्त अवस्था प्राप्त करना । कई संस्थाएँ एवं समूह ध्यान करना सिखाते हैं किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि आप वहाँ जाकर ध्यान करना सीखें। अधिकांश व्यक्ति अपने आप ही ध्यान करना सीख सकते हैं। निम्नांकित सरल विधि को आप अपना सकते हैं। : १. ३. एक शान्त कमरे में आराम से आँख बन्द कर कुर्सी पर ऐसे बैठो कि पाँव जमीन पर रहे व कमर सीधी रहे । २. कोई शब्द या मुहावरा ऐसा चुनो जिससे आपको भावनात्मक प्रेम या घृणा न हो (जैसे 'oak' या 'bring ) | आप अपने होंठ हिलाए बिना मन ही मन इस शब्द का उच्चारण बार-बार दुहराओ । शब्द पर ही पूरा ध्यान दो, शब्द के अर्थ पर ध्यान नहीं देना है। इस प्रक्रिया को करते हुए यदि कोई विचार या दृश्य दिमाग में आए तो सक्रिय होकर उसे भगाने का प्रयास मत करो एवं उस दृश्य या विचार पर अपना ध्यान भी केन्द्रित करने का प्रयास मत करो । किन्तु बिना होठ हिलाए आप मन ही मन जो शब्द बोल रहे हो उसकी ध्वनि पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करो । इस प्रक्रिया को प्रतिदिन दो बार ५-५ मिनट तक एक सप्ताह के लिए या जब तक कि दिमाग को अधिक समय के लिए विचार - शून्य करने के लिए प्रवीण न हो जाओ तब तक करो तत्पश्चात् ध्यान की अवधि धीरे-धीरे बढ़ाओ। शीघ्र ही देखोगे कि आप २०-२० मिनट के लिए ध्यान करने में समर्थ हो गए हो । कुछ व्यक्तियों को शब्द के आश्रय के बदले किसी चित्र या मोमबत्ती आदि वस्तु का आश्रय लेना सरल लगता है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार के किसी भी शान्त ध्यान से दिमाग को विचारों एवं चिन्ताओं से रिक्त करना । ' उक्त वर्णन अमरीकन मेडिकल एशोसिएशन ने दिया है। अन्य कई विशेषज्ञों के वर्णन भी अन्यत्र देखे जा सकते हैं। अब हम उस विधि की चर्चा करते हैं जो जैन संस्कृति में सामायिक नाम से हजारों वर्षों से प्रचलित है। ३. सामायिक तत्त्वार्थसूत्र के ९वें अध्याय में सामायिक चरित्र एवं उत्तम संहनन वाले जीवों के ध्यान" का उल्लेख हुआ है। वह कथन मुनि चरित्र की अपेक्षा से है। बिना व्यक्तिगत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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