Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ १० I कात्तिकेयानुप्रेक्षा के परिप्रेक्ष्य में श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा का मूलभूत विषय तो जैन परम्परा में सुप्रचलित १२ अनुप्रेक्षाओं अथवा १२ भावनाओं का विवेचन करना है किन्तु उसमें इस विवेचन के अन्तर्गत यथाप्रसंग जैन परम्परा के, धर्मदर्शन के सभी पक्षों को समाहित कर लिया गया है । जिस प्रकार तत्त्वार्थ सूत्र सात तत्त्वों को आधार बनाकर जैन परम्परा के सम्पूर्ण तत्त्वज्ञान की चर्चा करता है, उसी प्रकार कार्तिकेयानुप्रेक्षा में भी जैन तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, सृष्टिस्वरूप, मुनि आचार, श्रावकआचार आदि सभी पक्षों की चर्चा है | हमें यह देखकर आश्चर्य होता है कि उसमें कहीं भी गुणस्थान सिद्धान्त की चर्चा नहीं है और न उपशम श्रेणी और न क्षायिक श्रेणी के अलग-अलग विकास की बात कही गयी है । गुणस्थान सिद्धान्त के अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण आदि जो विशिष्ट नाम हैं, उसका भी उनमें कोई उल्लेख नहीं है । यदि संक्षेप में कहें तो उसमें गुणस्थान की अवधारणा का अभाव है किन्तु जिस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान की अवधारणा का अभाव होते हुए भी कर्मनिर्जरा के आधार पर सम्यग्दृष्टि, श्रावक, विरत आदि दस अवस्थाओं का चित्रण है उसी प्रकार कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा में भी निर्जरा अनुप्रेक्षा के अन्तर्गत कर्मनिर्जरा के आधार पर निम्न १२ अवस्थाओं का चित्रण हुआ है १. कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामिकुमार, टीका शुभचन्द्र, सं० डा० ए० एन० उपाध्ये, परमश्रुत प्रभावक मण्डल श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, सं० १९७८ ई० । fac प-सीलो य । मिच्छादो सद्दिट्ठी असंख-गुण-कम्म- णिज्जरा होदि । तत्तो अणुवयधारी तत्तो य महव्वई पाणी ॥ पढम कसाय - चउन्हं विजोजओ तह य खवय-२ य तत्तो उवसमग चत्तारि ॥ सजोइ-णाहो तहा अजोईया | अख-गुण-कम्म णिज्जरया ।। ९/१०६-१०८ दंसण- मोह-तियस्स खवगो य खीण- मोहो एदे उवरि उवरिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88