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त्रि० श० च० में सांस्कृतिक जीवन
निःसन्देह यह युद्धक्रीड़ा तत्कालीन मनोविनोद का साधन रही होगी क्योंकि ग्रन्थ में देवताओं द्वारा प्रदर्शित उक्त क्रीड़ाओं द्वारा ऋषभदेव के आनन्दित होने का उल्लेख है।'
द्यूत क्रीड़ा-- हेमचन्द्र ने राजाओं को चूत क्रीड़ा में संलग्न दिखाया है । यह उस समय मनोरञ्जनार्थ खेला जाता था। ऋग्वेद में भी इस क्रीड़ा का उल्लेख है । महाभारत में इसी क्रीड़ा के फलस्वरूप पाण्डवों को निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। मनु ने भी द्यूतक्रीड़ा को राजा के लिए निषिद्ध कर्म कहा है । कामसूत्र में द्यूत फलक का उल्लेख है । ६ निशीथचूर्णी में द्यूत के खिलाड़ियों को द्यूतकार कहा गया है। मानसोल्लास में इस क्रीड़ा का विस्तृत वर्णन प्राप्य है। अतः यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल से ही द्यूत क्रीड़ा का प्रचलन था, जो हेमचन्द्र के काल में विद्यमान था ।
इन्द्रजाल-प्राचीन काल से ही लोगों के मनोरंजनार्थ अलौकिक सिद्धियों द्वारा इन्द्रजाल का प्रचलन था। वैदिक साहित्य में शब्दशक्ति. विज्ञान और हस्तकौशल से अलौकिक और चमत्कारपूर्ण कार्य करने का उल्लेख है। हेमचन्द्र ने भी इन्द्रजाल के जानकार ऐन्द्रजालिकों का उल्लेख अनेक प्रसंगों में किया है।
१. त्रिषष्टि १।२।६६०-६८२ २. वही १२१७८-७९ ३. ऋग्वेद १०१३४।८ कृष्णदास अकादमी वाराणसी १९८३ ४. महाभारत : सभापर्व, सं० बी० एस० सुकथंकर, भाण्डारकर ओरिएण्टल
रिसर्च इंस्टीच्यूट पूना १९२७-३३ ५. मनुस्मृति ९।२१ चौखम्बा संस्कृत सिरीज वाराणसी १९७९ ६. शिवशेखर मिश्र : सोमेश्वर कृत मानसोल्लास एक सांस्कृतिक अध्ययन
वाराणसी १९६६ उद्धृत पृ० ४९७।९८ ७. निशीथचूणि ३, पृ० ५२७, ३८०, २, पृ० २६२ ८. सोमेश्वरकृत मानसोल्लास पूर्वोक्त ५।१३।७०१ ९. त्रिषष्टि २।६।३६६-३७४
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