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श्रमण, अप्रैल-जून १९९२
के समीप मनोहारी उपवन होते थे जहाँ वसन्त ऋतु के आगमन पर राज परिवार एवं नगरवासियों द्वारा विविध क्रीड़ाओं द्वारा आनंदोत्सव मनाया जाता था। विविध प्रकार के पुष्पों से आच्छादित इन उपवनों में कुछ लोग पुष्प गृहों में बैठकर आनन्दित होते थे, कुछ लोग उन्मत्त भौरों की आवाज से आनन्दित होते थे, कुछ स्त्री-पुरुष झूला झूलते थे, कुछ स्त्रियाँ अशोक और बकुल के पेड़ों से आलिंग बद्ध होकर अपने मुख का आसव पिलाती थीं, कुछ स्त्रियां पुष्पचयन करती थीं, कुछ पुरुष पुष्पचयन कर अपनी प्रेमिका के लिए पुष्पमाला और अन्य आभूषण तैयार करते थे। कुछ स्त्री-पुरुष फूलों को गेंद की तरह एक दूसरे पर फेंकते थे। इस तरह राजा एवं राजपरिवार तथा नगरवासी भिन्न-भिन्न क्रीड़ाओं में संलग्न होकर आनन्दित होते थे।'
जलक्रीड़ा-हेमचन्द्र ने उपवन के समीप ही क्रीड़ावापी का उल्लेख किया है जहाँ राजपुरुष अपने स्त्री वर्ग के साथ जल क्रीड़ा करते थे। आलोच्य ग्रन्थ राजपुरुषों से सम्बन्धित होने के कारण राजपुरुषों की ही जल क्रीड़ा का वर्णन उपलब्ध है। ग्रन्थ में राजा भरत का सुन्दरियों के साथ जल क्रीड़ा का वर्णन मिलता है। इस जल क्रीड़ा में राजा भरत के शरीर पर सुन्दरियों द्वारा जल सिंचन का उल्लेख किया गया है। जैन पुराणों में भी जल क्रीड़ा के अन्तर्गत प्रेयसियों को खींचकर पकड़ना, उनका शारीरिक स्पर्श करना, पिचकारी से उनके मुख को सुगन्धित जल से सिंचित करना एवं जल में आभूषण का ढूंढना आदि निर्दिष्ट है।
युद्ध क्रीड़ा-इसके अन्तर्गत भैंसों का युद्ध तथा मल्लयुद्ध निर्दिष्ट है। ग्रन्थ के वर्णन प्रसंगों में देवताओं द्वारा बड़े भैंसों का रूप धारण कर परस्पर लड़ने का उल्लेख है और इसके अतिरिक्त उनके द्वारा पहलवानों का रूप धारण कर अपनी भुजाओं को ठोंकते हुए एक दूसरे को अखाड़े में उतरने के लिए ललकारने का उल्लेख है।
१. त्रिषष्टि १।२, ९८५-१०१६ २. वही १६६।६९८-७०० ३. महापुराण ८।२२-२८; पद्मपुराण ८1९०-१००
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