Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 82
________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ सँवार कर बाँधा जाता था । पीछे गोलाकार में बंधी हुयी केशवेणियाँ खिले हुए पुष्पों की मालाओं से गूँथकर बांधी जाती थी ।" कालिदास ने रघुवंश में धूप से सुगन्धित केश को 'धूपवास' और धूपित केश को 'आश्यान' : वर्णित किया है । केश को सुगन्धित करने की विधि के लिए मेघदूत में 'केश-संस्कार' शब्द प्रयुक्त हुआ है ।" ८० पुष्प प्रसाधन - सौन्दर्य अभिवृद्धि के लिए अन्य प्रसाधनों के साथ ही पुष्पों का भी प्राचीन काल में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । विविध प्रकार के पुष्पों एवं उनके पल्लवों से निर्मित आभूषणों का प्रचलन हेमचन्द्र ने भी यत्र तत्र किया है और कई स्थलों पर तो ग्रन्थकार ने रत्ननिर्मित आभूषणों की तुलना पुष्प निर्मित आभूषणों से की है । विवाह आदि अवसरों पर पुष्पमाला बनाये जाने का उल्लेख मिलता है । केश को सजाने में भी पुष्पों का उल्लेख आया है । वसन्तोत्सव के प्रसंग में कई प्रकार के पुष्पों की मालायें, आभूषण आदि बनाने का उल्लेख हेमचन्द्र ने किया है । ५ मनोविनोद - प्राचीन काल से भारतीय समाज में मनोविनोद का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । प्रारम्भ में नृत्य, संगीत और मल्ल युद्ध आदि मनोविनोद के रूप में प्रचलित हुए । कालान्तर में उद्यान-यात्रा, जलक्रीड़ा, नाटक, कथा, कहानी आदि, मृगया, कन्दुक क्रीड़ा, इन्द्रजाल, द्यूत क्रीड़ा आदि का विकास हुआ। डॉ० रामजी उपाध्याय के अनुसार इन सभी मनोविनोद में नाटकों को सभ्य समाज में सर्वप्रथम स्थान दिया गया है । ६ जैन पुराणकारों ने भी मनोविनोद के विविध प्रकारों का उल्लेख किया है लेकिन उसकी सात्विकता पर बल देते हुए आवश्यकता से १. त्रिषष्टि १1१1८०३-८०५, ८१२ २. रघुवंश कालिदास, सं० एच० डी० वेलणकर, बम्बई १९४८ पृ० १६/५० वही १७।२२ ३. ४. मेघदूत, चौखम्बा संस्कृत सिरीज वाराणसी १९४० पृ० १।३२ ५. त्रिषष्टि १।२।८९, १।२।९८५-१०१६ ६. डॉ० रामजी उपाध्याय : भारत की प्राचीन संस्कृति, पृ० १०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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