Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 81
________________ 'त्रि० श. च० में सांस्कृतिक जीवन परांत सुगंधित गेरुए अंगोछे से शरीर पोछे जाने का उल्लेख है। उसके बाद रेशमी वस्त्र पहनने का उल्लेख है।' अंगराग-स्नानोपरांत सुगंधित अंगराग के लेप का उल्लेख मिलता है। तिलक-स्त्री और पुरुष दोनों ही ललाट पर तिलक लगाते थे। पुरुष ललाट पर चन्दन, शेखर, गोरोचन आदि का तिलक लगाते थे। स्त्रियाँ सौभाग्यसूचक लाल रंग की बिन्दी एवं सिन्दूर लगाती थीं। - काजल (अन्जन)-आँखों को सजाने में काजल का उपयोग किया जाता था। पत्ररचना-ग्रन्थ में ग्रीवाओं, भुजाओं के अग्रभागों, स्तनों व गालों पर पत्र रचना का उल्लेख है। ताम्बूल-संभवतः इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष द्वारा ओष्ठ लाल करने व मुख को सुगन्धित बनाने में किया जाता था।' अलक्तक-यह ओष्ठ पर लगाने वाला रस था। कनकवती ने इसे अपने ओष्ठ पर लगाया था। इसे पैरों में भी लगाया जाता था क्योंकि सुनन्दा एवं सुमंगला ने इसे पैरों में लगाया था।' केश-विन्यास-आलोच्य ग्रन्थ में केश को सुसज्जित करने का उल्लेख है। यह ज्ञात होता है कि स्नानोपरांत केश को दिव्य धूप से सुखाया जाता था। तदुपरांत सुगन्धित तेल आदि द्वारा केशों को १. त्रिषष्टि २।२।४३८, २३।१९८, ११२।७९८, २।१।२००, ४।७।३२७, १।५।३८९-३९० २. वही १४.३१, ३।६।१००, २१६१६९२, ६८९ ३. वही ११४५ ४. वही १२।८११ ५. वही २।६।४३९ ६. वही ३।६।९९, ४।२।१९ ७. वही ८।३।१९६ ८. वही १।६।४६७, १।२।८०७-८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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