Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 37
________________ जैन दर्शन में शब्दार्थ-सम्बन्ध निक्षेप पद्धति वक्ता ने किस शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है इसका निर्धारण निक्षेप से किया जाता है। प्रत्येक शब्द के कम से कम चार प्रकार के अर्थ सम्भव हैं। अतः उन चार अर्थों के आधार पर ही निक्षेप के चार भेद किए जाते हैं. १. नाम निक्षेप, २. स्थापना निक्षेप, ३. द्रव्य निक्षेप और ४. भाव निक्षेप । जैसे--- 'राजा' शब्द (१) राजा नामधारी व्यक्ति, (२) राजा का अभिनय करने वाला अभिनेता, (३) भूतपूर्व शासक और (४) वर्तमान शासक इन चार अर्थों को क्रमशः चार निक्षेपों के द्वारा प्रकट करता है। राजा राजा नाम अभिनेता, भूतपूर्व या वर्तमान का व्यक्ति चित्रादि आगामी शासक शासक (१) नाम निक्षेप--शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ की तथा गुणादि की अपेक्षा न करते हुए किसी व्यक्ति या वस्तु को संकेतित करने के लिए कोई 'नाम' रख देना 'नाम निक्षेप' है। जैसे--जन्मान्ध को 'नयनसुखदास' कहना । इसी तरह लोक व्यवहारार्थ रिंकू, पप्पू आदि नाम रखना नाम निक्षेप है । इसमें पर्यायवाची शब्द नहीं प्रयुक्त होते हैं क्योंकि एक शब्द से एक ही अर्थ (व्यक्ति) का बोध होता है और वह उसमें रूढ़ हो जाता है। एक नाम वाले कई व्यक्ति भी हो सकते हैं। (२) स्थापना निक्षेप-मूर्ति, चित्र, प्रतिकृति आदि में मूलवस्तु का आरोप करना स्थापना निक्षेप है। इसके दो प्रकार हैं- (क) तदाकार स्थापना और (२) अतदाकार स्थापना। जब मूल वस्तु की आकृति के अनुरूप आकृति में मूल वस्तु का आरोप करते हैं तो उसे तदाकार-स्थापना कहते हैं। जैसे भगवान राम की मूर्ति को 'राम' कहना और उसे राम की तरह सम्मान देना । जब मूल वस्तु की आकृति के अनुरूप आकृति के न रहने पर भी उसमें मूल वस्तु का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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