________________
त्रि० श० च० में सांस्कृतिक जीवन
७५
कौपीन' - यह एक प्रकार का छोटा वस्त्र था जिसका उपयोग साधु पहनने के काम में करते थे । ग्रन्थ में नारद मुनि को कौपीन वस्त्र में वर्णित किया गया है।
तौलिया२-- ग्रन्थ में तौलिया का भी उल्लेख स्नानोपरांत शरीर माजित करने के प्रसंग में आया है ।
कम्बल-ग्रन्थ में विक्रयार्थ लायी गयी वस्तुओं में कम्बल का भी उल्लेख हुआ है। इसका प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद में उपलब्ध है । ह्वेनसांग के अनुसार यह भेड़-बकरी के ऊन से निर्मित होता था।
अन्य प्रकार के वस्त्र-हेमचन्द्र ने अन्य कई प्रकार के वस्त्रों का भी उल्लेख किया है। जैसे-नेपथ्यवस्त्र, मुखवस्त्र, विचित्र वस्त्र, पट्ट अथवा पटबन्ध, साड़ी, पटवास आदि ।
आभूषण-वस्त्र निर्माण कला के आविष्कार के साथ-साथ आभूषण का भी प्रयोग भारतीय सभ्यता के विकास के साथ आरम्भ हुआ।" जैन पुराणों में शारीरिक सौन्दर्य की अभिवृद्धि के लिए आभूषण की उपादेयता का प्रतिपादन हुआ है। हेमचन्द्र ने भी विविध आभूषणों का उल्लेख अपने ग्रन्थ में किया है, जिसका उल्लेख निम्नवत् है। ग्राभूषण के विविध प्रकार
शिरोभूषण : मुकुट --यह माणिक्य निर्मित होता था। यह राजकुल से सम्बन्धित पुरुष एवं स्त्री धारण करते थे । ग्रन्थ में मुकुट के ही
१. त्रिषष्टि ७।४।२९० २. वही, १।२।८०४ ३. वही, १।१।७५४ ४. वही, ३।१।२०८, २।१।९०, १०।३।९, ४।५।१२१, ८।३।५०२, ५।५।६
जे० सी० सिकदर : स्टडीज इन द भगवती सूत्र, रिसर्च इंस्टीच्यूट आफ
प्राकृत जैनोलाजी एण्ड अहिंसा, मुजफ्फरपुर १९६४ पृ० २४१ ६. महापु०, पूर्वोक्त ६२।२९, ६८।२२५, ६३.४६१ ७. त्रिषष्टि १।६।७२४, ४।७।३१८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org