Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 70
________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राकृत - जैनागम परम्परा में गृहस्थ श्रावक के लिए एक विशिष्ट प्रकार की आचार संहिता का प्रतिपादन किया गया है । इस आचार संहिता के प्रतिपादन में बहुसंख्या में पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है उन पारिभाषिक शब्दों पर अध्ययन की दिशा में यह विनम्र प्रथम प्रयास है, अतः उसे अन्तिम नहीं कहा जा सकता । ६८ उपलब्ध गृहस्थाचार विषयक साहित्य को देखने से यह भी पता चलता है कि गृहस्थ श्रावक की आचार संहिता में भी देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार जैन मनीषियों द्वारा अनेक परिवर्तन, परिवर्द्धन एवं संशोधन किये गये हैं, उनकी पृथक्-पृथक् व्याख्यायें की गई हैं. आज के सामाजिक, आर्थिक एवं भौगोलिक जीवन तथा स्थिति के परिप्रेक्ष्य में उन पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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