Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 74
________________ ७२ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ प्राप्त किया जाता था। इस समय मछलियों को भी खाने की प्रथा थी। विवाहादि अवसरों पर भी आमिष भोजन का व्यवहार किया जाता आ । तीर्थङ्कर नेमिनाथ के विवाह में नभचर, जलचर, स्थलचर आदि को पकड़कर इकट्ठा किया गया था। हेमचन्द्र ने तापसी द्वारा मांस खाकर जीवनयापन करने का उल्लेख किया है । यद्यपि समाज में मांसाहार की प्रथा प्रचलित थी तथापि हेमचन्द्र ने मांस खाने को निषिद्ध किया है और कहा है कि मांस खाने वाला निष्ठुर और नरकगामी होता है। आलोच्य ग्रन्थ में अनेक भोज्य पदार्थ श्रावकों के लिए विहित बताए गए हैं। इनमें स्वीकृत भोजन को 'प्रतिलाभ्य" तथा अस्वीकृत भोजन को 'प्रत्याख्यान'' की संज्ञा दी गयी है। विहित भोज्य पदार्थों में ४६ प्रकार के दोषों से मुक्त भोजन को ग्राह्य बताया गया है और नवनीत भक्षण, मधुसेवन, उदुम्बर सेवन, मद्यपान, माँसाहार तथा रात्रि भोजन को त्याज्य बताकर जैन परंपरा का निर्वाह किया गया है। वस्त्र---प्रस्तुत ग्रन्थ में वस्त्र के लिए वास, वसन, परिधान, चल,. अंशुक, पट आदि शब्दों का व्यवहार किया गया है।" १. त्रिषष्टि, ७।२।१७६ २. वही, २१४।३४ ३. वही, ७।४।१७५४१९३ ४. वही, ८।९।१७२-१७३ ५. वही, १०७.३३० ६. वही, ८१९:३०५-३०६ ७. वही, ८९।३२३-३३३ ८. वही, ८।३।२२९ ९. वही, ९-३-२२५ १०. वही, ८।९।३३४, ३३६, ३३८, ३४१, ३५१, ३९-४० ११. वही, २१६, ६९६, ६४३, ९, २।४।३६५, ४१४।९, ३।२।११७, २६ ४५९, ४।४।३९, ७।२।२७, ८।३।९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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