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जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
- शिव प्रसाद
विद्याधरकुल (बाद में विद्याधरगच्छ ) की द्वितीय शाखा जालिहर ( प्राचीन जाल्योधर ) नामक स्थान से सम्बद्ध होने के कारण जालिहरगच्छ / जाल्योधरगच्छ के नाम से विख्यात हुई । यह गच्छ कब और किस कारण से अस्तित्व में आया ? इस गच्छ के पुरातन आचार्य कौन थे, इस बारे में सूचना अनुपलब्ध है । यद्यपि इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत मात्र दो प्रशस्तियां तथा अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत कुल ८ प्रतिमालेख ही उपलब्ध हैं; तथापि उनमें इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने के लिये पर्याप्त विवरण संग्रहीत हैं । सम्प्रति लेख में उन्हीं साक्ष्यों के विवेचन के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है ।
अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों, तत्पश्चात् जभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं विवेचन किया गया है -~
साहित्यिक साक्ष्य
१. नन्दिपददुर्गवृत्ति' - इस रचना की वि० सं० १२२६ / ई० सत् शोध अध्येता, प्रा० भा० इ० सं० और पुरातत्त्व विभाग, का० हि० वि० वि० वाराणसी ।
१. संवत् १२२६ वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि ३ सोमऽद्येह मंडली वास्तव्य श्रीजाल्योधरगच्छे मोढ़वंसे श्रावकश्रीसदेवसुतेन ले० पल्हणेन लिखिता । लिखापिता च गुणभद्रसूरिभिः ॥
सकलभुवनप्रकाशन भानुश्री हेमचन्द्रसुगुरूणाम् । स्थापयिताssसीद् भाण्डागारिक सोमारकसुश्राद्धः ॥१॥
मरुदेव गर्भजया तत्सुतया सीमिकाह्वया क्रीत्वा । नन्द्यध्ययन सुविवरण टिप्पितपुस्तकमिदमुदारम् ॥२॥
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