Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 44
________________ १२ के ग्रन्थमंडालहगच्छीमी गयी श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ ११६९ की एक प्रति जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है । इस प्रति की दाताप्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि के शिष्य गुणभद्रसूरि की प्रेरणा से यह प्रतिलिपि लिखी गयी। जालिहरगच्छीय बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि [वि० सं० १२२६ / ई० सन् ११६९ में इनकी प्रेरणा से नन्दिपददुर्गवृत्ति की प्रतिलिपि की गयी] २. पद्मप्रभचरित' --जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि ने वि. सं १२५४/ ई० सन् ११९८ में प्राकृत भाषा में इस महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत वर्णन किया है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस प्रशस्ति में उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है बालचन्द्रसूरि गुणभद्रसूरि सर्वाणंदमूरि धर्मघोषसूरि देवसूरि [वि. सं. १२५४/ई सन् ११९८ में पद्मप्रभ चरित के रचनाकार] मुनिबालचन्द्रशिष्यश्रीमद्गुणभद्रसूरिसुगुरुभ्यः ।। दत्तमुपलभ्य वयं फलममलं ज्ञानदानस्य ॥३॥ Muni Punyavijaya-Catalogue of Sanskrit & Prakrit MSS: Jesalmer Collection, (Ahmedabad 1972) No. 76 P. 25 1. Dalal, C. D.--Descriptive Catalogue of Manuscripts in Jaina Bhandars at Pattan (Baroda-1937) pp. 210-213 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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